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आएगा ही कैसे? अब गलत सीखना बंद कर दो और अब गलती के सभी कागज़ जला डालो।'
- दादाश्री
नुकसान का असर ही नहीं हो, उसके लिए 'ज्ञानीपुरुष' सुंदर चाबी देते हैं। पाँच सौ रुपये का नुकसान हो तब, पहले से ही जो 'अमानत' नुकसान के समय के लिए रखी हुई हो वह पूँजी उस खाते में जमा कर लेनी चाहिए। यह क्या स्थायी बही है?
ज्ञान से पहले 'उन्हें' व्यापार में नुकसान हुआ था, तो रात को नींद भी नहीं आई। लेकिन हिसाब लगाया कि इस नुकसान में हिस्सेदार कौन-कौन हैं? हिस्सेदार, उनके बीवी-बच्चे, खुद की पत्नी वे सभी हैं,
और चिंता खुद अकेले ही सिर पर लें, ऐसा कैसा? और तुरंत ही वे चिंतामुक्त हो गए ! ज्ञानी की कैसी ग़ज़ब की विचक्षणता! व्यापार में भी लोग चोरियाँ करते थे, उसे जान-बूझकर होने देते थे। जिसे हिसाब चुकाने ही हैं, उनके लिए चोर ले जाए या और कोई ले जाए, दोनों एक समान ही हैं न?
२०. नियम से अनीति व्यवहार मार्ग से मोक्ष की ओर क्रमपूर्वक आगे बढ़नेवालों को 'ज्ञानीपुरुष' इस काल के अनुरूप ऐसा मार्ग बताते हैं कि जो बिल्कुल नया ही अभिगम (दृष्टिकोण) है कि,
'संपूर्ण रूप से नीति का पालन कर, वैसा भी नहीं हो सके तो नीति का नियम से पालन कर और वैसा भी नहीं हो सके और अनीति करे तो भी वह नियम में रहकर कर। नियम ही तुझे आगे ले जाएगा!'
- दादाश्री
अनीति भी मोक्ष में ले जाएगी, लेकिन नियम में रहकर। ज्ञानी की इस बात ने तो धर्म में ग़ज़ब की क्रांति सर्जित की है! व्यवहार में नीति के आग्रही अंत में अहंकार की विकृति में परिणामित होकर मार्ग से च्युत हो जाते हैं, वहीं पर नियमपूर्वक की गई अनीति मार्ग में आगे ले जा सकती
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