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आपको वह जब निर्दोष अनुभव में आएगा, तब आप इस जगत् से छूटोगे।'
- दादाश्री
व्यापार में घरवालों के साथ एकमत होकर रहना चाहिए, लेकिन साथ ही सब को मिलकर तय कर लेना चाहिए कि 'इतनी संपत्ति इकट्ठी हो जाए, तभी तक व्यापार करना है।' ऐसी लिमिट बना लेनी चाहिए। आयुष्य का एकस्टेन्शन मिल रहा हो तो अन्लिमिटेड व्यापार करना काम का, वर्ना इसकी भागदौड़ में जिंदगी खत्म हो जाए तो फिर आत्मा के लिए कब हो पाएगा?
पैसे कमानेवाले खटपट करनेवाले जल्दबाज़ लोगों को 'ज्ञानीपुरुष' उसके परिणाम दिखाते हैं कि,
। '१९७८ में कमाने की बहुत जल्दबाजी करें तो १९८८ में अपने पास जो संपत्ति आनेवाली थी, वह अभी १९७८ में आ जाएगी, उद्दीरणा (भविष्य में फल देनेवाले कर्मों को समय से पहले जगाकर वर्तमान में खपाना) हो जाएगी, फिर १९८८ में क्या करेंगे आप?' - दादाश्री
लोकसंज्ञा के अनुसार चलकर लोग गलत करना सीख जाते हैं। लोगों को चालाकी करके कमाई करते हुए देखे तो खुद भी वह ज्ञान सीखकर वैसे ही करने लगता है। वहाँ पर 'ज्ञानीपुरुष' भयसिग्नल दिखाते हैं कि, जितना 'व्यवस्थित' में है, उतना ही तुझे मिलेगा जबकि चालाकी से कर्म बंधेगे और एक भी पैसा बढ़ेगा नहीं! नासमझी से कितना बड़ा नुकसान उठाते हैं?
व्यापार में गलत करनेवाले पर 'ज्ञानीपुरुष' शाब्दिक प्रहार करते हुए समझाते हैं,
'लेकिन गलत करते ही क्यों हो? ऐसा सीखे ही कहाँ से? कोई कुछ अच्छा सिखाए तो वहाँ से अच्छा सीखकर आओ। यह गलत करना किसी से सीखे हो, इसीलिए तो गलत करना आता है, नहीं तो गलत करना
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