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क्या पुद्गल विकारी बन सकता है?
नहीं! वह खुद विकारी नहीं बनता। पुद्गल सक्रिय स्वभाव वाला है अर्थात् अक्रिय नहीं है। सक्रिय अर्थात् क्रियाकारी है वह, लेकिन उसके विकारी होने का कारण यह है कि वह व्यतिरेक गुणों को खुद के गुण मानता है। फिर ये व्यतिरेक गुण पावर चेतन वाले हैं।
आत्मा के विभाव से राग-द्वेष और स्वभाव से वीतरागता!
चेतन और जड़, दोनों की धाराएँ अलग-अलग हैं। फिर बहती भी हैं निज-निज धारा में। यदि एक धारा में बहेंगी तो विभाव में परिणामित होंगी।
आत्मा का अंतिम पद है विभाव में से स्वभाव में आना।
वस्तु खुद के स्वभाव को भजे, वह धर्म है। आत्मा खुद के स्वभाव को भजे तो वह आत्मधर्म है, वही मोक्ष है।
बाकी, आत्म स्वभाव में न तो धर्मध्यान है, न ही अन्य कोई ध्यान! चारों ध्यान, शुक्लध्यान भी विभाव दशा है।
शुक्लध्यान पूर्णाहुति की तैयारी कर देता है। वह प्रत्यक्ष मोक्ष का कारण है लेकिन अंत में तो वह भी छूट जाता है।
'क्षण क्षण भयंकर भाव मरणे, कां अहो राची रह्यो?'
___-श्रीमद्
स्वभाव का मरण और विभाव का जन्म। अवस्था में 'मैं' पन, अर्थात् विभाव का जन्म। अवस्था के ज्ञाता-दृष्टा अर्थात् स्वभाव का जन्म।
स्वभाव में परिणामित होने के लिए दादाश्री की पाँच आज्ञा ही एक मात्र मार्ग है।
(१०) विभाव में चेतन कौन है? पुद्गल कौन है?
आत्मा अविनाशी है, 'आप' अविनाशी हो, लेकिन आपको रोंग बिलीफ हो जाती है कि 'मैं चंदूभाई हूँ', इसलिए 'आप' विनाशी हो।
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