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(१.३) विभाव अर्थात् विरुद्ध भाव?
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है। वह जो पूरण हो चुका है, उसी का गलन हो रहा है। जो गलन है, वह डिस्चार्ज है और पूरण, चार्ज है। पूरण में से गलन होता है और गलन में से 'खुद' अहंकार से वापस पुद्गल उत्पन्न करता है, पूरण करता है इसलिए टंकी खत्म ही नहीं होती। खत्म होने से पहले ही पानी डालता जाता है और फिर कहता है कि 'मुझे मुक्ति पानी है'। अरे भाई! ऐसे मिलती होगी? तूने यह धंधा ही बंधन का लगा रखा है!
अत: यह चेतन समझ में आए ऐसा नहीं है। हमारा आत्मज्ञान बहुत बड़ी चीज़ है। केवलज्ञान में और इसमें फर्क ही नहीं है। चार डिग्री का ही फर्क है। और यह आत्मज्ञान भी कैसा? अनुभव किया हुआ होना चाहिए। आत्मा मुक्त ही बरतना चाहिए, बिल्कुल मुक्त और वह निरालंब आत्मा होना चाहिए। ऐसा आत्मा नहीं चलेगा। इन सभी ने तो पावर आत्मा (पावर चेतन) की बात की है। अब उसे पावर आत्मा कहा तब लोगों को समझ में आया, नहीं तो यों ही चेतन कहेंगे तो कैसे समझ में आएगा? सेल में जैसे पावर भरा हुआ है, उसमें बेटरी और पावर भरने वाली चीज़े अलग होती हैं और सेल अपना काम करता रहता है। ये सेल ही हैं, मन-वचन-काया तीन सेल हैं । जब तक उनमें पावर भरा हुआ है तभी तक, पावर खत्म होने तक वे सेल चलेंगे और उसके बाद गिर जाएँगे। उसे हम डिस्चार्ज कहते हैं। आपको कुछ भी नहीं करना पड़ता अपने आप ही डिस्चार्ज होता रहता है। आपको देखते ही रहना है कि यह किस तरह से हो रहा है, बस इतना ही, और अगर अक्ल लड़ाने जाओगे तो उँगली जल जाएगी।
यह तो बहुत गहरी करामात है, यह रहस्यमय विज्ञान है पूरा, चौबीस तीर्थंकरों का सम्मिलित विज्ञान है। वर्ना एक घंटे में भेदज्ञान हो जाए ऐसा तो कभी हुआ ही नहीं है और वह भी संसार में रहते हुए। त्यागियों को भी नहीं होता था। लेकिन यह तो संसार में रहते हुए, बच्चे पालता है, सबकुछ करता है, खाता-पीता है, मौज करता है फिर भी कोई परेशानी नहीं आती क्योंकि यह तीर्थंकरों का विज्ञान है, यह अक्रम विज्ञान है।
इसमें तो पावर भरा हुआ है, और कुछ है ही नहीं। इसमें चेतन