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प्रथम फँसाव आत्मा का
दादाश्री : नहीं, नहीं, रोंग बिलीफ अहंकार से है । बुद्धि के पास बिलीफ उत्पन्न करने का तरीका ही नहीं है ।
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अहंकार पूरा ही रोंग बिलीफ है। रोंग बिलीफ रखने वाला खुद भी रोंग बिलीफ है। रोंग बिलीफ में रहकर रोंग बिलीफ रखता है। वह राइट बिलीफ में रहकर रोंग बिलीफ नहीं रखता।
प्रश्नकर्ता : राइट बिलीफ में रहकर रोंग बिलीफ होगी ही नहीं । दादाश्री : तब तो होगी ही नहीं ।
प्रश्नकर्ता : उसका अर्थ ऐसा हुआ कि बुद्धि के संयोग से आत्मा को यह रोंग बिलीफ हो जाती है या फिर आत्मा बुद्धि के आश्रय की वजह से ऐसा करता है ।
दादाश्री : नहीं, आत्मा तो ऐसा कुछ करता ही नहीं है न! आत्मा तो अकर्ता है।
प्रश्नकर्ता : बुद्धि किसके आधार पर यह सब करती है ?
दादाश्री : अहंकार के आधार पर ।
प्रश्नकर्ता : अहंकार भी जड़ है ?
दादाश्री : हाँ, जड़ तो पूरा ही है न, लेकिन वह अहंकार बिल्कुल जड़ नहीं है। वह मिश्र चेतन है । बुद्धि मिश्र चेतन है, सिर्फ मन ही जड़ (निश्चेतन चेतन) है। चित्त भी मिश्र चेतन है । माइन्ड इज़ कम्प्लीट फिज़िकल। (मन पूर्णत: जड़ है | )
अर्थात् आत्मा तो परमानंद स्वरूपी है, खुद के स्वभाव में आ जाए तो (यह सब) खत्म हो जाएगा। स्वभाव में नहीं आया है अभी, इस उपाधि भाव की वजह से ।
प्रश्नकर्ता : यह जो आत्मा है, बुद्धि की वजह से यह भ्रांति हो गई है लेकिन यदि बुद्धि और आत्मा साथ में नहीं होंगे तो यह भ्रम होने का कोई कारण ही नहीं है । यानी कि यह बुद्धि ही सबकुछ करती है