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(२.३) अवस्था के उदय व अस्त
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प्रश्नकर्ता : सभी तत्त्व रहते हैं ? दादाश्री : सभी। प्रश्नकर्ता : वे जल जाते हैं?
दादाश्री : आत्मा निकल जाता है न, तो भी पंच महाभूतों वाला खोखा (शरीर) पड़ा रहता है।
प्रश्नकर्ता : तब फिर उसे जला देते हैं ?
दादाश्री : जला देते हैं। सब पंच महाभूत चले जाते हैं, अलगअलग हो जाते हैं। आकाश, आकाश में मिल जाता है, पृथ्वी, पृथ्वी में मिल जाती है, पानी, पानी में मिल जाता है। सबकुछ अलग हो जाता है।
प्रश्नकर्ता : यह जो शरीर है, वह पाँच तत्त्वों से बना है फिर भी इस एक ही तत्त्व को, अग्नि को ही क्यों समर्पित करना पड़ता है?
दादाश्री : आप मिट्टी में दबाओगे तो मिट्टी में भी हो जाएगा। पानी में डाल दोगे तो पानी में सड़ जाएगा, खराब हो जाएगा, लेकिन अग्नि जल्दी करती है इसलिए अग्नि में डालते हैं और हमें दिखाई देता है। वह देखते-देखते ही हो जाता है, तुरंत खत्म हो जाता है। अग्नि पाँचों ही तत्त्वों को अलग कर देती हैं। वर्ना मिट्टी में दबाने पर भी वह (पाँचों तत्त्व) अलग कर देती है और पानी में भी (पाँचों तत्त्व) अलग हो जाते हैं। अरे, वायु भी कर देती है। लेकिन ये तत्त्व दिखाई देते हैं इसमें। यह जो जलाना है, उसे हम तुरंत ही खत्म करके आ जाते हैं न! दूसरे दिन अस्थियाँ लेने जाते हैं।
अनंत काल से इसी में हाथ डालता रहा है। इसी मिट्टी में हाथ डालता रहा है, तो भी तू संतुष्ट नहीं होता? सोच तो सही, चार मिट्टी के इस दलदल में, कहाँ पर क्या पड़ा है, ढूँढ तो सही!
उसमें तो हैं असंख्य जीव मात्र एक रूपी तत्त्व ही परमाणुओं से बना है। हवा, पानी, तेज,