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(२.३) अवस्था के उदय व अस्त
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से प्रकट में आया, वह मध्य में प्रकट रहा, उसके बाद जब मरा तब वापस अप्रकट में चला गया। वहाँ से वापस प्रकट में आता है। बस! ये साइकल्स (चक्र) चलती ही रहती हैं।
प्रश्नकर्ता : तो दादा! तो उसकी मूल स्थिति क्या है ? उत्पत्ति से पहले की स्थिति क्या है ?
दादाश्री : नहीं! उत्पत्ति से पहले की स्थिति है ही नहीं। यह उत्पत्ति जो है, वह उत्पत्ति लय होती रहती है और ध्रुवता अर्थात् जो हमेशा दिखाई देता है, हमें प्रकट दिखाई देता है। उस उत्पत्ति से पहले क्या है ? तो कहते हैं कि जो लय हुआ था, उसी में से उत्पन्न हुआ है। उत्पन्न में से वापस प्रकट हुआ। यह साइकल निरंतर चलती ही रहती है।
प्रश्नकर्ता : इस प्रकिया का अंत है या नहीं है या फिर चलता ही रहेगा?
दादाश्री : उसका अंत है ही नहीं। स्वभाव नहीं छूटता न! द्रव्य वस्तु का स्वभाव नहीं छूटता न! इसका अंत कब आता है? जब, इन दो तत्त्वों को जो कि साथ में हैं, उन्हें 'दादा' अलग कर देते हैं, उसके बाद में वे छूट जाते हैं। उसके बाद में सिर्फ आत्मा ही रहा। अतः उसे दुःख नहीं होता, अन्य कुछ नहीं होता।
प्रश्नकर्ता : तो क्या मोक्ष इन सब से अलग स्थिति है ?
दादाश्री : इन सब से दूर। इन सब से जो अलग है, वही मोक्ष कहलाता है और जो इन सब से अलग है, वही आत्मा कहलाता है। इस संसार में तो आत्मा की (अज्ञान दशा की) ही सारी स्थितियाँ हैं, और उसके पर्याय हैं।
वे हैं रूपक...
प्रश्नकर्ता : वह जो गॉड और G-O-D, जनरेटर, ऑपरेटर और डिस्ट्रॉयर इस प्रकार से जो कहते हैं, वह और ब्रह्मा, विष्णु और महेश,