Book Title: Aptavani 14 Part 1 Hindi
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 332
________________ (२.४) अवस्थाओं को देखने वाला 'खुद' २६१ हैं, वे तत्त्व दृष्टि से देख सकते हैं। जो नहीं जानते, वे तत्त्व दृष्टि से कैसे देख सकेंगे? तत्त्व दृष्टि से अवस्था की कीमत खत्म हो जाती है। तत्त्व दृष्टि हो जाने पर वस्तु दिखाई देती है, वर्ना अवस्था दृष्टि से तो कैफ चढ़ता है। ॐ अर्थात् तत्त्व दृष्टि। किसी में भी तत्त्व दृष्टि उत्पन्न नहीं हुई है न! पूरा ही जगत् अवस्था दृष्टि में है। किसी ने कहा है कि 'ज्ञान क्रियाभ्याम् मोक्ष'। हम तो क्रियाएँ भी करते हैं और ज्ञान का भी करते हैं तो क्या हमारा मोक्ष नहीं है?' नहीं। क्योंकि तू अवस्था को ज्ञानक्रिया कहता है। अवस्था की ज्ञानक्रिया, वह सारा अज्ञान कहलाता है। उससे तो तुझे सोने की बेड़ी मिलेगी। तत्त्व दृष्टि होने के बाद में ज्ञान क्रियाभ्याम् मोक्ष कहा जाता है। वह अरूपी क्रिया है। जगत् अवस्था स्वरूप से बात करता है और मैं तात्त्विक स्वरूप से बात करता हूँ। मैं तात्त्विक दृष्टि से देखता हूँ, पूरा जगत् अवस्था दृष्टि से देखता है। यह तो, अवस्था को खुद का स्वरूप मानता है और ये जो दुःख हैं, वे दु:ख नहीं हैं। ये सभी दुःख तो नासमझी के हैं। और वे भी खुद के द्वारा निमंत्रित किए हुए ही हैं। पूरे बड़ौदा में सुचारित्र और कुचारित्र चल रहे होंगे, लेकिन म्युनिसिपालिटी में पूछकर आओ कि 'उसे नोट किया गया है ?' तो फिर जिस चीज़ को नोट नहीं किया जाता, उस बात की पकड़ कैसी? यदि हमारी तत्त्व-दृष्टि हो गई है तो वे सभी (चीजें) अवस्था मात्र हैं। जगत् गड़बड़ घोटाला आत्मा के जो-जो पर्याय उत्पन्न होते हैं, उन्हीं में तन्मयाकार हो जाता है। पिछले जन्म में पुरूष हो और इस जन्म में स्त्री बन जाए तो हम उसे सही-सही बता दें और उससे कहें कि तू पिछले जन्म में पुरूष था। तब भी उसे इस बात की शर्म नहीं आएगी कि 'मैं स्त्री बन गया हूँ'। क्योंकि वह पर्याय में रत रहता है। ऐसा है यह जगत्। यह सब

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