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(२.४) अवस्थाओं को देखने वाला 'खुद'
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रह सकें। अवस्था में रहने से उसका फल क्या आता है ? पूरा ही मनुष्य जन्म, या फिर देवगति या फिर तिर्यंच या नर्कगति का फल आता है। ज्ञान से ही निबेड़ा आएगा। ज्ञान में यदि एक प्रतिशत भी फर्क हो तब भी वह कहीं का कहीं चला जाएगा। हम तो प्राकृत स्वभाव का निकाल करने बैठे हैं जबकि जगत् प्राकृत स्वभाव को 'मेरा-मेरा' करता है। हम सब तो उसके ज्ञाता-दृष्टा रहते हैं।
हमने चखी हैं दुनिया भर की अवस्थाएँ
भगवान ने स्व में स्वस्थ रहने के लिए कहा है जबकि लोग अवस्था में रहकर अस्वस्थ हो गए हैं। पूरा ही जगत् अवस्था में रमा हुआ है
और उसी में तन्मयाकार रहता है। इसलिए अवस्था को भोगने के लिए चौर्यासी लाख योनि में भटकते रहना पड़ता है। त्यागी-तपस्वी, साधुसाध्वी, आचार्य-उपदेशक और शास्त्रकार वगैरह सभी अवस्थाओं में ही तन्मयाकार रहते हैं।
___ 'हमने' सभी अवस्थाएँ चखकर देख ली हैं। कुछ भी चखना बाकी नहीं रखा है। हाथी बनकर घूमा, मदमस्त और मद भी टपकता था। और उसके बच्चे का नाम भी मदनिया (गुजराती में हाथी के बच्चे को मदनिया कहते हैं)। मैंने उसके बच्चे को भी देखा है। मैंने सोचा, 'उसका बच्चा कितना बड़ा होता है!' अपने यहाँ तो बालक इतना सा होता है जबकि उसका बच्चा तो इतना बड़ा! मदनिया! अरे मदनलाल, क्या बात करें आपकी? मदनिया। वह भी पता लगाकर आया था। मदनिया था न, तो मैंने कहा, 'देखकर तो आने दो'। इस दुनिया के लोभी लोग लोभ की वजह से देखने नहीं जाते लेकिन मुझे लोभ नहीं है, मुझे देखकर आने तो दो। दुनिया देखनी तो चाहिए न?
हमारे लोक में हमारी इज़्ज़त है। हमारा लोक नित्य लोक है। ये लोग तो अवस्थाओं में रहते हैं। इन लोगों में हमारी आबरू नहीं है। हम किसी भी अवस्था में नहीं रहते हैं। देह की अवस्थाओं, प्रकृति की अवस्थाओं में रहने वाले, वे तो इस दुनिया के लोग हैं।
अगर मनपसंद अवस्था में तन्मयाकार हो जाए तब भी वह पसंदीदा