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(२.४) अवस्थाओं को देखने वाला 'खुद'
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को जाने, वे भेदविज्ञानी कहलाते हैं। ये जो आत्मा के गुण हैं न, उनमें से सारे अनावृत नहीं हुए हैं, वे सब हम में हैं। हम (1958 में ज्ञान हुआ तभी से) अठाईस सालों से आत्मा में रहते हैं। इस देह के मालिक नहीं हैं।
प्रश्नकर्ता : अब ऐसा तो किसी ने अभी तक नहीं कहा है। दादाश्री : यह तो अक्रम विज्ञान है न!
प्रश्नकर्ता : सभी लोग सभी जगह तक पहुँचे हैं, लेकिन यहाँ तक नहीं पहुँच पाए हैं।
दादाश्री : इसलिए अब काम निकाल लेने जैसा है। तभी तो हम इस तरह आवाज़ लगा-लगाकर कहते हैं न कि, 'काम निकाल लो, काम निकाल लो, काम निकाल लो'।