Book Title: Aptavani 14 Part 1 Hindi
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 349
________________ २७८ आप्तवाणी-१४ (भाग-१) दादाश्री : हाज़िरी में तो स्वस्थ रहेंगे ही। यह जो अस्वस्थ रहते हो, वह तो आपकी बुद्धि अस्वस्थ रखवाती है और जब तक बुद्धि है, तब तक अहंकार है। वह जो अहंकार वाली बुद्धि है, वह अस्वस्थ करवाती है। उसका एन्ड आ जाएगा तो अवस्थ रहने का कोई कारण नहीं रहेगा। या फिर पूरे दिन ज्ञानी पुरुष के पास बैठे रहोगे तो भी अस्वस्थ होने का कारण नहीं रहेगा। प्रश्नकर्ता : भौतिक प्रकार से, फिज़िकली तो वह संभव नहीं है न? दादाश्री : नहीं, संभव नहीं है फिर भी जितना लाभ मिल सके, उतना ठीक है। वर्ना जब खुद की बुद्धि और अहंकार खत्म हो जाएँगे, निकाल करते-करते, तो फिर अपने आप ही ओपनली, साफ-साफ, स्वस्थता ही रहेगी। निरंतर स्व में रहेगा तो स्वस्थता। ___अवस्था में स्वस्थता, वही अस्वस्थपन है और स्व में स्वस्थता, वह है स्वस्थपन। लोग अस्वस्थ क्यों रहते हैं? क्योंकि वे सदा अवस्था में ही रहते हैं। वे लोग अज्ञान अवस्थाओं को पोतापन (अपना) मानते हैं। अवस्थाओं में ऐसा देखते हैं कि 'मैं ही हूँ'। ज्ञानी पुरुष अवस्था को देखते हैं और जानते हैं। प्रश्नकर्ता : दादा, हमें अदंर से जो आनंद होता है तो वह एक विचार है या अवस्था है? दादाश्री : वह अवस्था है। प्रश्नकर्ता : तो उस अवस्था को हमें पकड़े रखना है या जाने देना है और दूसरी अवस्था को देखते रहना है? दादाश्री : वह तो अपने आप ही चली जाएगी। हम पकड़कर रखेंगे तो भी चली जाएगी। हम नहीं पकड़ेंगे तो भी चली जाएगी। उसके बजाय उस अवस्था से ऐसा कहना कि 'वापस आना, हमें लाभ देना'। निकाल लेना काम रे आत्मा के गुणों को जाना ही नहीं है। जो आत्मा के सभी गुणों

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