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(२.४) अवस्थाओं को देखने वाला ‘खुद'
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आते हैं, तब चित्त वहाँ पर चिपका रहता है। घंटों तक, गुंठाणे (४८ मिनट्स, गुणस्थानक) भी बीत जाते हैं। जो पर्याय पतले हो चुके हैं, उन पर्यायों पर चित्त अधिक नहीं चिपकता। चिपकता है और अलग हो जाता है।
किसी भी अवस्था के प्रति आसक्ति रहे, ऐसे विचार आ रहे हों तो उसे कह देना है कि 'तेरा और मेरा संबंध मात्र ज्ञेय और ज्ञाता का है, अब शादी नहीं करनी है। ऐसा कहते ही वह अवस्था और विचार चले जाएँगे।
खुद की उल्टी समझ की वजह से शादी करता है (एकाकार होता है) इसलिए उसे सहन करना पड़ता है। तन्मयाकार होता जाता है इसलिए संसार चिपक गया है। कुछ खास अवस्थाएँ ही चिपकाती हैं । मीठी तथा कड़वी, दोनों अवस्थाएँ चिपकाती हैं, जब मीठी और कड़वी, दोनों अवस्थाएँ चिपकाएँ, उस समय लक्ष में रहना चाहिए और बोलना चाहिए कि 'ये मेरी हैं ही नहीं, तो वे चली जाएंगी।
मोक्ष में जाने का जो प्रमाणपत्र है, उसमें किसी भी क्रिया को नहीं देखा जाता। मात्र वीतरागता को ही देखा जाता है। दखल किसे कहते हैं? अगर कोई भी अवस्था आए और उसमें चित्त कुछ देर के लिए चिपक जाए तो वह दखल है। यात्रा में चाहे कैसी भी अवस्था आए तो भी हम चिपके नहीं हैं। हम अवस्था को खड़ा नहीं रहने देते। तीन मिनट के लिए खड़ा रखेंगे तो सभी की लाइन लग जाएगी। समझ में आ रहा है न यह? अपने महात्माओं को वीतरागता रहती है, लेकिन दरअसल नहीं रहती।
आहुति, प्रत्येक अवस्था की दुनिया भर (के लोगों) में कोई भी अवस्था स्वाहा होकर नहीं जाती लेकिन बीज डालकर जाती है और इस प्रकार जब अंतिम पौन घंटा बचता है तब सभी डाले हुए बीजों के हिसाब आ जाते हैं
और जिस प्रकार के बीज ज़्यादा डाले हैं, अगले जन्म में वहीं पर जाता है।