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आप्तवाणी-१४ (भाग-१)
पलक का झपकना भी अवस्था सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक सभी क्रियाएँ मात्र अवस्थाएँ हैं। देहधारी की, जन्म से मृत्यु तक की सभी क्रियाएँ, जो आखों से दिखाई नहीं देतीं और जिनके लिए हम ऐसा नहीं मानते हैं कि वे संयोगिक प्रमाणों के आधार पर ही होती हैं, वे सभी अवस्थाएँ हैं।
जितना भी उदय व अस्त वाला है, वे सभी अवस्थाएँ हैं। कितनी देर तक रहेगा, वह कह नहीं सकते। आँखों का झपकना भी अवस्था है। आँखों को यदि हमें खुद झपकाना हो तो क्या दशा होगी? साठ के बदले दो सौ बार हो जाएगा। ऐसा है।
प्रश्नकर्ता : अवस्था और इन्सिडेन्ट में क्या फर्क है?
दादाश्री : इन्सिडेन्ट में अवस्था समा जाती है, लेकिन अवस्था में इन्सिडेन्ट नहीं समाता।
कोई कुछ नहीं करता, कोई फूल चढ़ाए तो वह उसकी अवस्था है, पत्थर मारे तो वह भी उसकी अवस्था है। जब अंदर से फूल के परमाणु उड़ते हैं तब उसी समय बाहर से फूल आते हैं और अंदर पत्थर जैसे परमाणु उड़ते हैं तो बाहर से पत्थर आते हैं। समय पर आ मिलता है।
क्या अहम् विनाशी है? कोई अवस्था पसंद हो तो उसके संयोग मिल जाते हैं।
सभी अवस्थाएँ बदलती रहती हैं। कोई भी अवस्था नित्य नहीं रहती क्योंकि वे संयोग हैं। और संयोग वियोगी स्वभाव के होते हैं।
सम्मेलन से संयोग और विसर्जन से गलन होता है। इन आँखों से तत्त्व नहीं दिखाई देते, सिर्फ अवस्थाएँ दिखाई देती हैं। खुद अपने तत्त्वों को नहीं जानता, अवस्थाओं को जानता है और सभी अवस्थाएँ नाशवंत हैं।
लोगों की कद काठी बदलेगी, वेश बदलेंगे, सबकुछ बदलेगा