Book Title: Aptavani 14 Part 1 Hindi
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 326
________________ (२.३) अवस्था के उदय व अस्त २५५ उसके बाद असंख्यात भाग में वृद्धि होती है। फिर संख्यात भाग में वृद्धि होती है। फिर संख्यात गुण वृद्धि होती है। फिर असंख्यात गुण वृद्धि और अनंत गुण वृद्धि होती हैं। बारह बजे तो झुंड के झुंड लोग होते हैं, वह सब उसी में झलकता है।। अब पहले अनंत गुण हानि आएगी। फिर असंख्यात गुण हानि आएगी। फिर संख्यात गुण हानि आएगी। फिर संख्यात भाग हानि। उसके बाद असंख्यात भाग हानि और अनंत भाग हानि।* यह उसका गुणधर्म है, जो बदलता ही रहता है। निरंतर बस यही है! खुद को कुछ करने को नहीं रहता। उसका धर्म बदलता रहता है। उसके अंदर झलकता है। बोझ नहीं है, दर्पण को कभी बोझ लगता है क्या? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : हम उसके सामने नखरे करें तो दर्पण को नुकसान है या हमें नुकसान है ? दर्पण का नुकसान कहा जाएगा क्या? समझने जैसा है। * उपोद्घात में दृष्टांत समझने के लिए रखा है।

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