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(१.५) अन्वय गुण-व्यतिरेक गुण
प्रश्नकर्ता : तो इसमें यह जो तात्त्विक विज्ञान है, इसमें ऐसा क्या होता है ? आपने यह जो उदाहरण दिया न कि, पानी के बजाय शराब का ग्लास पी लिया, उसी प्रकार से इन छ: तत्त्वों की बात में ऐसा क्या होता है?
दादाश्री : दूसरे पाँच तत्त्वों के परिवर्तन से उस पर दबाव आता है। उस दबाव को लेकर ऐसा लगता है कि, 'यह मैं कर रहा हूँ या फिर कौन कर रहा है?' वह स्वाभाविक गुण नहीं है उसका।
प्रश्नकर्ता : लेकिन शुरुआत में आत्मा जो कि शुद्ध स्वरूप में था, वह ऐसे असर में क्यों आ गया?
दादाश्री : अभी भी शुद्ध ही है। उस दिन भी शुद्ध ही था, आज भी शुद्ध है और जब देखो तब शुद्ध ही रहेगा।
प्रश्नकर्ता : लेकिन अज्ञान से मुक्त था, शुरुआत की स्थिति में...
दादाश्री : वह अभी भी अज्ञान से मुक्त ही है। वह कभी भी अज्ञान वाला हुआ ही नहीं।
प्रश्नकर्ता : अतः यह जो विभाव है, वह वैज्ञानिक है। अब सब क्लियर हो गया।
दादाश्री : वह क्लियर हुए बगैर तो मन का समाधान ही नहीं होगा न! सेट होना चाहिए न!