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(२.१) परिभाषा, द्रव्य-गुण-पर्याय की
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दादाश्री : अविनाशी वस्तु नहीं हो सकती। प्रश्नकर्ता : और विनाशी चीज़ गुण-पर्याय रहित हो सकती है? दादाश्री : विनाशी में तो सभी कुछ विरोधाभासी ही होता है न! प्रश्नकर्ता : लेकिन उसके गुण और पर्याय तो होते हैं न?
दादाश्री : उसके गुण शाश्वत नहीं होते। गुण किसे कहेंगे? जो हमेशा के लिए हों, उन्हें गुण कहेंगे। लेकिन ये विनाशी चीजें तो खुद ही शाश्वत नहीं हैं। उनके पीछे क्या सिर फोड़ी? गुण किसे कहा जाता है? जो परमानेन्ट रहें, अन्वय में हों, हमेशा के लिए हों। ये तो खुद ही परमानेन्ट नहीं हैं, तो वहाँ पर गुण कैसे? फिर भी हम ऐसा कह सकते हैं कि भाई, ये अवस्थाएँ हैं। पर्याय नहीं कहेंगे। पर्याय बहुत सूक्ष्म चीज़ है और अवस्थाएँ मोटी चीज़ है। जैसे कि अज्ञानी व्यक्ति यह समझ सकता है कि, 'मेरी अवस्था बदल गई है। वह पर्याय का ही स्वरूप है, लेकिन मोटा स्वरूप है।
पर्याय और अवस्था में फर्क प्रश्नकर्ता : पर्याय का मतलब क्या है? ।
दादाश्री : ये लोग जिसे पर्याय कहते हैं, वह चीज़ अलग है जबकि वास्तव में पर्याय अलग चीज़ है। पर्याय ऐसी चीज़ है कि मनुष्य को समझ में नहीं आ सकती! मनुष्य को अवस्था समझ में आ सकती
प्रश्नकर्ता : अवस्था कहो या पर्याय, वे सब समानार्थी शब्द हैं न?
दादाश्री : वे एक नहीं हैं, वे अलग हैं। पर्याय बहुत अलग चीज़ है। वह तो, अभी के लोगों को यह समझ में नहीं आने की वजह से, पर्याय और अवस्था को, सब को एक ही मान लिया है, लेकिन पर्याय बहुत अलग चीज़ है। वह ज्ञानी पुरुष का काम है, अन्य लोगों का काम नहीं है।