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आप्तवाणी-१४ (भाग-१)
प्रश्नकर्ता : ‘अन्य द्रव्यों के साथ, द्रव्य-गुण-पर्याय के अन्यत्व है लेकिन पृथक्त्व नहीं है।' यह वाक्य समझाइए।
दादाश्री : दूसरे द्रव्यों से अन्यत्व है, बिल्कुल भी कनेक्शन नहीं है, नो कनेक्शन। एक द्रव्य दूसरे द्रव्य की कोई भी मदद नहीं करता, न ही कोई नुकसान पहुंचाता है।
प्रश्नकर्ता : और पृथक्त्व अर्थात् कि उसके टुकड़े नहीं किए जा सकते?
दादाश्री : नहीं! 'पृथक्त्व नहीं है', वह द्रव्य-गुण-पर्याय का है, उनमें एक-दूसरे से जुदाई नहीं है। और अन्यत्व, वह दूसरे द्रव्यों से है। बिना पर्याय का द्रव्य नहीं हो सकता और बिना द्रव्य का पर्याय नहीं हो सकता। द्रव्य कब कहलाता है? वह खुद द्रव्य तभी कहलाता है जब उसमें गुण और पर्याय हों। तभी वह द्रव्य कहलाता है। और पृथक्त्व अर्थात् ऐसा कहा है कि एक-दूसरे से जुदाई नहीं है। ___कोई भी वस्तु, पुद्गल भी, गुण और पर्याय सहित ही होता है
और जो गुण व पर्याय सहित नहीं है, वह वस्तु ही नहीं है। पर्याय नहीं होंगे तो गुण नहीं होंगे, गुण नहीं होंगे तो वस्तु नहीं होगी। यदि गुण हैं, तो पर्याय होने ही चाहिए। सूर्य का जो प्रकाश नामक गुण है तो उसकी किरणें तो होंगी ही। किरणें बदलती रहती हैं लेकिन प्रकाश सदा रहता है।
प्रश्नकर्ता : हाँ, ठीक है। अब समझ में आया दादाजी।
दादाश्री : जब गुण कार्यकारी होते हैं तब वे पर्याय कहलाते हैं। सूर्यनारायण को द्रव्य कहेंगे, वस्तु कहेंगे। प्रकाश नामक उनका गुण है
और उनकी जो रेज़ (किरणे) बाहर निकलती हैं, वे पर्याय कहलाती हैं। उन पर्यायों का नाश होता है लेकिन गुण का नाश नहीं होता और वस्तु का नाश नहीं होता।
प्रश्नकर्ता : क्या कोई भी वस्तु, गुण और पर्याय रहित नहीं हो सकती?