Book Title: Aptavani 14 Part 1 Hindi
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 296
________________ (२.२) गुण व पर्याय के संधि स्थल, दृश्य सहित २२५ पर्यायों की ही बात की है। दरअसल आत्मा की किसी ने बात ही नहीं की है न दादा? दादाश्री : और करेंगे भी कैसे? समझ में नहीं आ सकता न यह। ये बड़े-बड़े ज्ञानी एक अक्षर भी नहीं समझ सके हैं। ___ लोगों को ऐसे विचार ही नहीं आते कि आत्मा परमानेन्ट है और ज्ञान भी परमानेन्ट है और उसके पर्याय... प्रश्नकर्ता : पर्याय विनाशी हैं। दादाश्री : इसलिए फिर कहा है कि आत्मा ज्ञान-दर्शन पर्याय स्वरूप है, शुद्ध है, गलत नहीं कहा है। जब तक सभी (विभाविक) पर्याय संपूर्ण रूप से शुद्ध नहीं हो जाते, तभी तक पर्याय हैं। उसके बाद पर्याय चले जाते हैं। जब हमारे पर्याय पूर्ण हो जाएँगे तब सिर्फ ज्ञान में ही! केवलज्ञान ! बस! (विभाविक) पर्याय नहीं, सिर्फ केवल अर्थात् अन्य कुछ भी नहीं। प्रश्नकर्ता : ज्ञान के अलावा और कुछ भी नहीं। दादाश्री : अर्थात् ये पर्याय संसार के संदर्भ में दिए गए हैं, समझ में आया न? प्रश्नकर्ता : सांसारिक आत्मा के संदर्भ में, ऐसा? दादाश्री : उसेक बाद पर्यायों की ज़रूरत ही नहीं हैं न! पर्याय यहीं पर हैं। केवलज्ञान के (विभाविक) पर्याय नहीं होते। बुद्धि खत्म हो जाए तो पर्याय खत्म हो जाते हैं। 'हम' जो ऐसा कहते हैं न कि हमारी बुद्धि खत्म हो चुकी है, वैसा पूर्ण रूप से नहीं है। लोगों को समझाने के लिए ही ऐसा कहते हैं। कोई अगर बुद्धि का रौब रखता हो न, तो उसका रौब उतारने के लिए। बाकी हम में जो चार डिग्री हैं न, उतने पर्याय अशुद्ध हैं, इसीलिए यह दशा है। प्रश्नकर्ता : तो क्या उन पर्यायों के शुद्ध होने के बाद मन रहता है ? वाणी और शरीर रहता है ? शरीर तो रहता है न?

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