Book Title: Aptavani 14 Part 1 Hindi
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 302
________________ (२.२) गुण व पर्याय के संधि स्थल, दृश्य सहित प्रश्नकर्ता : इस पुद्गल की अवस्थाएँ चेतन के निमित्त की वजह से बदलती हैं या फिर ऐसा कुछ नहीं है ? २३१ दादाश्री : सब निमित्त हैं ही । निमित्त पर ही पूरा निर्भर है। चेतन नज़दीक आया है, वह निमित्त की वजह से होता रहता है । प्रश्नकर्ता : तो पहले चेतन में अवस्था बदलती है ? दादाश्री : अवस्था बदलती ही नहीं है और सब अपने स्वभाव में होते हैं। सिर्फ दो का संयोग, सामीप्यभाव होने से ये व्यतिरेक गुण (विभाव) अपने आप ही उत्पन्न हो जाते हैं और व्यतिरेक गुण होने के कारण पुद्गल की अवस्था बदलती रहती है। आत्मा के पर्याय, चेतन के चेतन पर्याय होते हैं और जड़ जड़ पर्याय होते हैं, दोनों के पर्याय अलग-अलग होते हैं। लोग ये सभी बातें करते हैं लेकिन तोते के राम-राम जैसी । रोज़-रोज़ मुंबई की खबर पूछते हैं लेकिन जब तक मुंबई नहीं देखा है तब तक मूल बात को समझ नहीं पाएगा। रोज़-रोज़ पूछता रहता है कि भूलेश्वर क्या इधर से जाते हैं ? कौन से मार्ग से जाते हैं ? प्रश्नकर्ता : लेकिन क्या उससे हेल्प होती है ? दादाश्री : उससे हेल्प तो होती है, लेकिन उससे संतुष्टि नहीं होती। प्रश्नकर्ता : दादा! क्या ऐसे करते-करते एक दिन मुंबई पहुँच जाएँगे ? दादाश्री : हाँ ! ऐसा हो जाएगा। प्रश्नकर्ता : जहाँ पर खड़ा है, वह मुंबई नहीं है, उसका विश्वास है न ? दादाश्री : हाँ ! उसका विश्वास है । प्रश्नकर्ता : तब फिर मुंबई की तरफ चलना जारी रखेगा न ! दादाश्री : हाँ ! फिर उसे मुंबई दिखने लगता है, मुंबई थोड़ा-थोड़ा दिखने लगता है।

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