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आप्तवाणी - १४ ( भाग - १ )
आत्मा के रूप में, उसकी बाउन्ड्री में बदलती रहती हैं, उसी के आधार पर यह पुद्गल नकल करता है । इस पुद्गल की अवस्था बदलती रहती है, जिसे हम ऐसा मान लेते हैं कि 'यह मैं हूँ' । यह मान्यता छूट जाएगी तो फिर कोई परेशानी नहीं रहेगी ।
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प्रश्नकर्ता : तो जैसे-जैसे आत्मा की अवस्था बदलती है, यह पुद्गल वैसी ही नकल करता है ?
दादाश्री : हाँ ! पास में, एकदम नज़दीक आ जाने की वजह से। प्रश्नकर्ता : सामीप्य भाव कहा है। फिर भी दोनों के क्षेत्र अलग ही रहे हैं ?
दादाश्री : फिर क्षेत्र अलग हैं ।
प्रश्नकर्ता : पुद्गल की अवस्थाएँ, ये जो चौरासी लाख योनियाँ कही हैं, वे ?
दादाश्री : हं ।
प्रश्नकर्ता : तो फिर आत्मा की अवस्था यानी क्या ?
दादाश्री : आत्मा, पुद्गल को देखता है इसलिए उसकी अवस्था भी वही हो जाती है। फिर भी वह अपने खुद के स्वभाव में है ।
प्रश्नकर्ता : तो वह बदलता कैसे है, दादा ?
दादाश्री : उसकी सिर्फ मान्यता ही बदलती है । जब पुद्गल की अवस्था बदलती है, तब उसे हम ऐसा मानते हैं कि 'यह मैं बदल रहा हूँ', और वैसा ही बन जाता है । इसलिए कहा है कि जिसे समकित होता है, उसकी दृष्टि सही हो जाती है इसलिए यह सब तुरंत चला जाता है ।
प्रश्नकर्ता : क्या आत्मा की अवस्था के अनुसार पुद्गल उसकी नकल करता है?
दादाश्री : समझाने के लिए है।
'नकल करता है', ऐसा तो आपको कहने के लिए,