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(२.२) गुण व पर्याय के संधि स्थल, दृश्य सहित
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दादाश्री : शुद्धात्मा के पर्यायों पर, अवस्थाओं पर दबाव आता है अगर अभी तुझ पर दबाव आए तो तेरा दिमाग़ बिगड़ जाएगा या नहीं बिगड़ेगा?
प्रश्नकर्ता : बिगड़ जाएगा। दादाश्री : उसी तरह!
ज़रूरत, पर्याय की या पाँच आज्ञा की? इन भाई साहब को पर्याय समझ में नहीं आया तो उससे क्या वह मोक्ष में नहीं जा पाएँगे? |
प्रश्नकर्ता : अवश्य जाएँगे।
दादाश्री : तो कहते हैं, 'मोक्ष में नहीं जा पाएँगे', ऐसा नहीं होगा। क्योंकि ज्ञानी पुरुष के आश्रय में जाना है न! जानने जाएगा तो बल्कि बिगड़ जाएगा। उसके बजाय अनजान रहना ही अच्छा। यह तो, इतना भी समझ में आया है। वे जो वाक्य रखे हैं न (चरणविधि के ज्ञान वाक्य), उन वाक्यों के आधार पर समझ में आया है।
पूछना चाहिए, ज़रा सोचने के लिए। प्रश्नकर्ता : अचेतन पर्यायों का क्या असर होता है?
दादाश्री : असर तो दो प्रकार से होता है। अचेतन पर्याय ज्ञानी पर कोई भी असर नहीं डाल सकते और अज्ञानी पर असर डालते हैं।
प्रश्नकर्ता : अज्ञानी को कर्म बंधन करवाते हैं ?
दादाश्री : हाँ! कर्म बंधवाते हैं, यह जगत् उसी से चल रहा है न! अचेतन पर्यायों से ही चल रहा है न।
समुद्र जैसी अगाध चीज़ है यह तो। आपको तो थोड़े में दे दिया है। निबेड़ा लाना है जल्दी। बाकी ये जो समरंभ, समारंभ और आरंभ समझ में आ जाते हैं, वह स्थूल भाषा है। यह तो सूक्ष्मातिसूक्ष्म, बहुत सूक्ष्म है!