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आप्तवाणी-१४ (भाग-१)
दादा ने जो कहा है, वैसा ज्ञाता-दृष्टा रहना है अभी। ज्ञाता-दृष्टा किसमें रहोगे? तो कहता है कि 'चंदूभाई का जो चल रहा है, उसे देखते रहना है'। इसे बारीक कातने गए तो खो जाओगे इसलिए यह जो मोटा सिखाया है, यही तरीका अच्छा है। ज्ञाता-दृष्टा! ज्ञेय आया कि ज्ञाता आ जाता है। दृश्य आया कि दृष्टा आ जाता है। ज्ञेय और दृश्य अनेक होते हैं। ज्ञेय
और दृश्य बदलते ही रहते हैं, बार-बार । धर्मास्तिकाय अर्थात् गतिसहायक तत्त्व भी बदलता रहता है, बाकी सभी सनातन तत्त्व बदलते रहते हैं। हर एक तत्त्व परिवर्तित होता रहता है। बुद्धि से अगर इसमें गहरे उतरने जाएगा तो विकल्प में घुस जाएगा और फिर बल्कि बिगड़ जाएगा, दाग़ पड़ जाएगा। उसके बजाय आज्ञा में रहो।
प्रश्नकर्ता : ठीक है। वह बात सही है।
दादाश्री : अर्जुन को जो ज्ञान प्राप्त हुआ था, मैंने आपको वही ज्ञान दिया है। क्षायक समकित ! इसीलिए आत्मा पर यह जो प्रतीति बैठी है, वह हटती ही नहीं है। हमारी आज्ञा का पालन करने से प्रतीति रहेगी। फिर उसमें से विज्ञान उत्पन्न होगा और उससे मुक्ति होगी, इस तरह सब साथ में ही होता रहेगा।
अलग हैं दोनों के पर्याय, संगदोष और एब्सल्यूट के
प्रश्नकर्ता : पहला जो पर्याय खड़ा हुआ और हमने देखा, कर्मफल रूपी जो पर्याय होता है, तो वे कर्म कब बंधे थे?
दादाश्री : कर्म का सवाल ही कहाँ है ? पर्याय कर्म नहीं हैं। इटर्नल वस्तु किसे कहते हैं? कोई भी वस्तु यदि इटर्नल है तो उसमें गुण होने ही चाहिए। गुण परमानेन्ट हैं और पर्याय विनाशी हैं। इस प्रकार से यह जगत् बना है।
प्रश्नकर्ता : क्या उसी के लिए इन लोगों ने एब्सल्यूट शब्द का उपयोग किया है?
दादाश्री : वह एब्सल्यूट वस्तु अलग है और जो एब्सल्यूट है न, वह पर्याय सहित है लेकिन फिर उसके पर्याय भी अलग होते हैं। ये