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आप्तवाणी-१४ (भाग-१)
चेतन कहा है। ऐसा कभी सुना है? जैन धर्म ने भी बुद्धि को चेतन कहा है, ऐसा?
प्रश्नकर्ता : बुद्धि को मतिज्ञान में रख दिया है न? दादाश्री : वह ज्ञान में हो ही नहीं सकती न! प्रश्नकर्ता : मतिज्ञान रूपी कह सकते हैं?
दादाश्री : बुद्धि अर्थात् अहंकारी ज्ञान और आत्मा के (विभाविक) जो पर्याय हैं, वह अहंकारी ज्ञान है।
प्रश्नकर्ता : आत्मा के जो विभाविक पर्याय हैं, वह क्या अहंकारी ज्ञान है?
दादाश्री : हाँ। और स्वाभाविक पर्याय भी अलग चीज़ है, बहुत गहरी बात है। अभी बात नहीं करनी चाहिए। यहाँ से दूसरे लोग इस बात को जानेंगे और इसका कुछ न कुछ मतलब निकालेंगे। शास्त्रकारों ने कहा है 'प्रकाश साधनोने निरुचार्या, ज्ञान-दर्शन पर्याये। दादा ने पर्यायों के लिए मना किया है, क्या बात है? इसलिए ऐसी बात नहीं करते हैं। फिर लोग बात को ही ले जाएँगे न! कोई कह उठेगा न! ऐसी कितनी ही बातें हम नहीं देते, ऐसी जो दुनिया के लिए नुकसानदायी हैं। वह सिर्फ हमें अकेले को ही समझना है और पुस्तकों में, जैन शास्त्रों में देखोगे तब पता चलेगा कि वेदांत उसे (बुद्धि को) जड़ कहते हैं, फलाना उसे जड़ कहता है लेकिन जैन शास्त्र उसे चेतन कहते हैं।
प्रश्नकर्ता : तो दादा, हम जिसे निश्चेतन चेतन कहते हैं, वही चेतन है न?
दादाश्री : हाँ, वही निश्चेतन चेतन है।
जिसे निश्चय चेतन कहते हैं, वह नहीं। निश्चेतन चेतन कहते हैं न! वह तो जब हम आत्मा में रहेंगे तब, वह तो ज्ञान में आएगा। निश्चय की दखल नहीं है। निश्चय में दखल नहीं है। अगर निश्चय चेतन कहेंगे तो निश्चय-बुद्धि कहलाएगी, लेकिन ऐसा नहीं है।