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आप्तवाणी-१४ (भाग-१)
प्रश्नकर्ता : अर्थात् बिगिनिंगलेस है, एन्डलेस। (शुरुआत नहीं है और अंतहीन) ये दो वाक्य हैं ?
दादाश्री : एन्डलेस! बस! लेकिन यह बात समझने जैसी है।
प्रश्नकर्ता : नहीं! मुझे तो इस अनंती के नियम का समाधान चाहिए।
दादाश्री : सभी नियमों का समाधान है लेकिन नियमों का समाधान सही तरीके से समझकर होना चाहिए। जैसा इस सूर्य के बारे में होता है। लोग कहते हैं, उगा और अस्त हो गया।
__ आत्मा में ऐसे गुण हैं, अनात्मा में भी ऐसे गुण हैं। उत्पन्न होना, विनाश होना लेकिन ध्रुवता नहीं छोड़नी है। काल तत्त्व में भी ऐसे गुण हैं। यह जो काल तत्त्व है न, 'उत्पन्न होना, विनाश होना लेकिन ध्रुवता नहीं छोड़ता है'। आकाश में भी ऐसे गुण हैं । आकाश में भी उत्पन्न होना, विनाश होना लेकिन ध्रुवता नहीं छोड़ता है।