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(२.१) परिभाषा, द्रव्य-गुण-पर्याय की
प्रश्नकर्ता : पर्याय तो समय-समय पर बदलते हैं न?
दादाश्री : हाँ, बदलते रहते हैं। वस्तु के गुण वही के वही रहते हैं, पर्याय बदलते रहते हैं। पर्याय जो हैं वे...
प्रश्नकर्ता : लेकिन कभी अशुभ आते हैं और कभी शुभ आते हैं?
दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं है। ज्ञान के सभी पर्याय बदलते रहते हैं, और जैसे-जैसे चीजें बदलती जाती हैं, वैसे-वैसे उस तरफ ज्ञान के पर्याय भी बदलते जाते हैं। अशुभ और शुभ को पर्याय नहीं माना जाएगा, वे तो उदय कहलाते हैं।
प्रश्नकर्ता : वे उदय कहलाते हैं? दादाश्री : हाँ। पर्याय तो वस्तु के होते हैं, मूल वस्तु के।
प्रश्नकर्ता : आत्मा के जो पर्याय हैं, वे अवस्थांतर (अवस्था में परिवर्तन) हैं। जिस प्रकार से बालक का जन्म होता है, फिर वह बड़ा होता है, फिर जवानी आती है, फिर बुढ़ापा आता है तो उसे पर्याय कहा जाता है?
दादाश्री : उसे पर्याय नहीं कहते। वे सब तो अवस्थाएँ कहलाएँगी। पर्याय तो बहुत सूक्ष्म होते हैं। उसे जगत् के लोग समझते ही नहीं हैं, पर्याय को। इन अवस्थाओं को समझ सकते हैं। पर्याय मूल वस्तु पर लागू होता है। अब छः मूल वस्तुएँ हैं। एक है चेतन, दूसरा है अणुपरमाणु (जड़), और फिर ये धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, काल और आकाश। उनके पर्याय होते हैं, बाकी सब के पर्याय नहीं होते। सभी मूल वस्तुओं के पर्याय होते हैं। अतः वास्तव में तो मूल वस्तुओं के तो गुण होते हैं, उन गुणों के पर्याय होते हैं, मूल वस्तु के पर्याय नहीं होते। वस्तु के गुणों के ही पर्याय होते हैं। ___गुण निरंतर साथ में रहते हैं और निरंतर साथ में रहेंगे। गुण में और द्रव्य में फर्क ही नहीं है, सिर्फ उसके पर्याय बदलते रहते हैं।