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आप्तवाणी-१४ (भाग-१)
हम जो अवस्थाएँ देखते हैं, उनमें छोटी से छोटी अवस्था को पर्याय कहा जाता है, पर्याय से आगे और कोई भाग नहीं हो सकते।
प्रश्नकर्ता : जो निश्चय से द्रव्य है, क्या वह पर्याय का कर्ता है ?
दादाश्री : कोई भी कर्ता नहीं है। पर्याय अर्थात् जैसे कि यह सूर्य है न, उस सूर्य की रेज़ (किरणे) निकलती हैं न, तो सूर्य को, खुद को वह नहीं करना पड़ता, वे अपने आप स्वाभाविक रूप से निकलती हैं। उसी प्रकार से स्वाभाविक रूप से ये पर्याय उत्पन्न होते हैं। अतः किसी को करना नहीं पड़ता, कोई भी कर्ता नहीं है।
__ अवस्थाओं का ज्ञान नाशवंत है। स्वाभाविक ज्ञान अविनाशी है। यह सूर्य है और उसकी किरणें हैं। उसी प्रकार, आत्मा है और आत्मा की जो किरणें हैं, वे पर्याय हैं। ये तो बहुत सूक्ष्म बातें हैं।
प्रश्नकर्ता : इन वस्तुओं की अवस्थाएँ कौन सी शक्ति से बदलती
दादाश्री : काल तत्त्व। जैसे-जैसे काल बदलता है, वैसे-वैसे अवस्थाएँ बदलती हैं।
रियल वस्तु की तुलना नहीं करनी चाहिए। वह वस्तु एक ही है। उत्पन्न होना और उसके काल के अनुसार रहना और फिर नाश हो जाना, वह अवस्था का स्वभाव है। सभी मनुष्य तत्त्व की अवस्थाएँ ही देख सकते हैं। दुनिया में पूर्ण ज्ञानी के अलावा कोई भी ऐसा नहीं हैं जो तत्त्व को देख सके। अभी मैं सर्व तत्त्वों को जानता हूँ। मैं एब्सल्यूटिज़म अर्थात् 'केवल' जानता हूँ।
वास्तव में पर्याय शब्द का दूसरी जगह पर उपयोग नहीं करना चाहिए, फिर भी लोग उपयोग करते हैं। पर्याय शब्द अविनाशी चीज़ों पर ही लागू होता है। पर्याय का अर्थ है अवस्था और अवस्था शब्द का सब आराम से उपयोग करने लगे।
प्रश्नकर्ता : अवस्था और पर्याय में क्या फर्क है, उसका एकाध उदाहरण दीजिए न!