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(२.१) परिभाषा, द्रव्य-गुण-पर्याय की
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हैं। ज्ञान-दर्शन-सुख व शक्ति, जितने भी घाती कर्म कहलाते हैं, वे सभी (विभाविक दशा के) गुण हैं और पर्याय कौन से हैं ? जो अघाती कहलाते हैं, वे सब पर्याय हैं। अर्थात् वेदनीय, नाम, गोत्र और आयुष्य, वे सब पर्याय की वजह से उत्पन्न होते हैं।
अर्थात् अभी जो सिद्धगति में बैठे हैं, वे लोग (सिद्धो) निरंतर खुद के स्वरूप में ही मस्त रहते हैं। उनके खुद के गुण ज्ञान-दर्शन-सुख वगैरह सब हैं। वे खुद ज्ञाता और दृष्टा हैं। अत: वे जगत् के जीवमात्र को देखते हैं। वे खुद ज्ञाता-दृष्टा हैं यानी कि उनके इस गुण की वजह से, वे निरंतर सब को देख सकते हैं। उसमें भी यों बाहर नहीं देखते, उन्हें अंदर ही दिखाई देता है। जैसे कि दर्पण में दिखाई देता है न, उस प्रकार से खुद के द्रव्य में ही दिखाई देता है। उनके अंदर ही झलकता है। अब यह झलकता है, तो यदि सुबह का समय हो न, चार बजे हों तो तब कोई नहीं उठता, सब सो रहे होते हैं तो वैसा दिखाई देता है। फिर पाँच बजे कुछ-कुछ चहल-पहल होती है तो वैसा दिखाई देता है। फिर छः बजे और भी अधिक चहल-पहल दिखाई देती है। आठ-नौ बजे सब इधर-उधर जाते हैं, झुंड के झुंड घूमते हुए दिखाई देते हैं।
प्रश्नकर्ता : बदलता रहता है।
दादाश्री : लोगों में जो बदलाव होता है, वे उनके पर्याय हैं। तो उन्हें वहाँ पर बदला हुआ दिखाई देता है। अब, मैंने हाथ ऊँचा किया तो उनके ज्ञान में वह पर्याय हुआ। ज्ञान शाश्वत है, ये अवस्थाएँ सारी बदलती रहती हैं। अतः द्रव्य-गुण व पर्याय, वे आत्मा के हैं। फिर पुद्गल के भी द्रव्य-गुण व पर्याय हैं।
प्रश्नकर्ता : ये द्रव्य-गुण जो हैं, वे आत्मा में दिखाई देते हैं या पर्याय में दिखाई देते हैं?
दादाश्री : गुण तो शाश्वत स्वभाव है। गुण का मतलब क्या है? जो निरंतर साथ में रहे।
प्रश्नकर्ता : अब उन्हें तो कुछ करना नहीं है, गुणों को तो?