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आप्तवाणी-१४ (भाग-१)
चंदू हूँ' में घुस गया था, वही झंझट है। उस 'मैं' को फ्रेक्चर करने के लिए यह कह रहा हूँ। यह जो मान्यता वाला 'मैं' है, वह वहाँ से निकल जाए तो उसी को कहते हैं कि 'मैं', 'मैं' में बैठ गया।
प्रश्नकर्ता : दादा, क्रमिक मार्ग वाले ऐसा कहते हैं न कि अहंकार से मूढ़ हो चुका आत्मा ऐसा कहता है कि 'मैं कर्ता हूँ'। वास्तव में वह कर्ता नहीं है। यह तो अहम् कहता है। अज्ञान कहता है, आत्मा नहीं कहता।
दादाश्री : सबकुछ अज्ञान ही कहता है न!
दो ही बातें हैं, तीसरा कोई है ही नहीं। एक तो वह है, जो मोक्ष ढूँढ रहा था और एक भगवान हैं। वे, जो मोक्ष स्वरूप होकर बैठे हुए
हैं।