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(१.७) छः तत्त्वों के समसरण से विभाव
करते हैं), लेकिन इनमें से चार विधर्मी नहीं हैं। इनके साथ रहने के बावजूद भी स्वधर्म में रह सकते हैं जबकि पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) व आत्मा दोनों विधर्मी हो जाते हैं, बाकी के चार तो विधर्मी (विकृत) होते ही नहीं हैं।
प्रश्नकर्ता : तो आत्मा किस प्रकार से विधर्मी है?
दादाश्री : आत्मा विधर्मी अर्थात् उसे भ्रांति उत्पन्न हो गई है कि 'यह मैं कर रहा हूँ'। और पुद्गल परमाणु विधर्मी (प्रयोगसा परमाणु) यानी कि पुद्गल परमाणुओं में से खून नहीं निकलता, मवाद नहीं बनता। लेकिन पुद्गल परमाणुओं के रंग बदलते हैं। लाल-पीला-हरा सभी उसके गुणधर्म हैं। लेकिन इनमें जो गुणधर्म से बाहर हैं, वे (पुद्गल परमाणु के) विभाविक गुण (मिश्रसा परमाणु) हैं। जैसे कि मवाद बनता है और पकता है और ऐसा सब होता है। (विधर्मी और विभाविक पुद्गल अलग ही है।)
छः द्रव्य, नहीं हैं कम्पाउन्ड के रूप में प्रश्नकर्ता : एक तत्त्व दूसरे तत्त्वों को कुछ भी नहीं कर सकता, तो यदि वे दो तत्त्व कम्पाउन्ड रूपी बन जाएँ तो दोनों के ओरिजनल गुणधर्म रहते हैं?
दादाश्री : ओरिजनल गुणधर्म रहते हैं, तभी अन्य किसी को कुछ नहीं कर सकते न! और वह कम्पाउन्ड नहीं बनता, मिक्स्चर के रूप में ही रहता है। उनमें से किसी के भी अपने गुणधर्म नहीं बदलते। मिलते हैं, टकराते रहते हैं, मिक्स्चर हो जाता है लेकिन कम्पाउन्ड नहीं बनता। कम्पाउन्ड बन जाए तो मैंने आपसे उधार लिया और आपने मुझसे उधार ले लिया, ऐसा हो जाएगा। किसी का किसी से लेना भी नहीं है और देना भी नहीं है। कोई झंझट नहीं है। सिर्फ मिलते हैं और अलग होते हैं। यदि कम्पाउन्ड बनता तो गुणधर्म बदल जाते। अन्य किसी में तो कम्पाउन्ड बनने का (गुण) है ही नहीं न, सिर्फ विभाविक पुद्गल में (उसके खुद के अंदर-अंदर) कम्पाउन्ड बनता है। यदि आप पर किसी