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(१.७) छः तत्त्वों के समसरण से विभाव
प्रश्नकर्ता : यह ज्ञान व्यतिरेक गुण में आता है या चेतन में आता है ? किसमें आता है ?
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दादाश्री : ज्ञान किसी में भी नहीं आता । ज्ञान तो जो जैसा था, उसे वैसा ही कर देता है ।
प्रश्नकर्ता: आप जो देते हैं, वह ज्ञान जड़ का है या चेतन का ? कहाँ से आया यह ज्ञान ?
दादाश्री : कम्प्लीट चेतन का ।
प्रश्नकर्ता : लेकिन व्यतिरेक के तौर पर ही है न ? यह चेतन का ज्ञान भी व्यतिरेक गुण सहित है?
दादाश्री : ऐसा नहीं है । यह व्यतिरेक नहीं है। यह तो आत्मा का गुण है !!! दादा का दिया हुआ ज्ञान, वह तो 'आत्मा के गुण' कहलाते हैं। उसका प्रवेश होते ही यह सबकुछ तुरंत ही चला जाता है ।
विभाव अनादि से हैं
प्रश्नकर्ता : उस विशेष भाव में तत्त्व आते हैं क्या ?
दादाश्री : हाँ, तत्त्व हैं और तत्त्व भी निराले हैं। उससे (विभाव से) अलग रहते हैं ।
प्रश्नकर्ता : अतः जब आत्मा और जड़ का विशेष भाव होता है, तो ये बाकी के तत्त्व साथ में रहते हैं ?
दादाश्री : मूल रूप से (मुख्य) तो जो विशेष भाव हो गया है वह है, वहीं से चलता रहता है।
प्रश्नकर्ता : तभी से दूसरे तत्त्व भी साथ में ही हैं ?
दादाश्री : सब साथ में ही हैं । उनमें कोई बदलाव हुआ ही नहीं है । फिर यह चक्कर चलता ही रहता है ।
प्रश्नकर्ता : और पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) में जो