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[१०] विभाव में चेतन कौन? पुद्गल कौन?
'आप' चेतन, 'चंदू' पुद्गल आत्मा खुद अविनाशी है। 'आप' खुद अविनाशी हो लेकिन आपको 'रोंग बिलीफ' है कि, 'मैं चंदूभाई हूँ', इसलिए आप विनाशी हो। 'मैं चंदूभाई हूँ' वह विनाशी है, उसे आप खुद मैं हूँ' ऐसा मान बैठे हो। आप 'खुद' तो सनातन हो लेकिन वह भान उत्पन्न नहीं होता। वह भान हुआ कि हो गया मुक्त! अतः जब तक 'आपको' 'आत्मा' का भान नहीं होता तब तक ये विशेष गुण रहते हैं लेकिन भान होने के बाद में ये विशेष गुण चले जाते हैं।
विशेष भाव वह खुद का दरअसल गुण नहीं है, वह व्यतिरेक गुण है इसलिए छूट जाएगा। उसका संयोग हुआ है, उसका वियोग हो जाएगा। लेकिन वह कब होगा? तब जब कोई स्वाभाविक भाव में ला देगा और इस विशेष भाव का अस्त हो जाएगा। जब मूल स्वभाव में आ जाएगा, तब। वर्ना सब ऐसे का ऐसा ही चलता रहेगा। इस ज्ञान के बाद में जब खुद स्वभाव भाव में आता है तब ठिकाना पड़ता है। अब 'आपको ऐसा स्वभाव भाव हो गया है कि 'मैं शुद्धात्मा हूँ'। पहले ऐसा विशेष भाव था कि 'मैं चंदूभाई हूँ। ___अन्य वस्तु (आ मिलती) है तो यह 'मैं' (अहम्) उत्पन्न होता है, वर्ना नहीं होता। यह ज्ञान मिलने के बाद में, यदि 'उसे' वह तत्त्व न मिले तो फिर विभाव नहीं होगा। यहाँ पर जब तक संसार में (अज्ञान दशा में) है, तब तक सभी तत्त्व साथ में रहेंगे। जब यह ज्ञान मिलता है तब 'खुद' समझ जाता है, और तब से अन्य तत्त्वों पर ध्यान नहीं देता।