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आप्तवाणी-१४ (भाग-१)
दादाश्री : हाँ। बाकी, स्वभाव में धर्मध्यान नहीं है। आत्मा का स्वभाव धर्मध्यान नहीं है। आत्मा का जो विशेष भाव है, वह धर्मध्यान है। जो विभाव है, वह धर्मध्यान है। आत्मा का स्वभाव सिर्फ मोक्ष है, अन्य कोई भी ध्यान नहीं है। स्वभाव में ध्यान-व्यान नहीं होता। यह तो, आत्मा के विभाव में धर्मध्यान है, शुक्लध्यान है, आर्तध्यान है, रौद्रध्यान है, सभी ध्यान विभाव दशा हैं।
प्रश्नकर्ता : शुक्लध्यान भी विभाव है ? दादाश्री : हाँ, शुक्लध्यान भी विभाविक है। प्रश्नकर्ता : इसलिए क्योंकि शुक्लध्यान की श्रेणी पर पहुँच रहा
है?
दादाश्री : हाँ, जब तक उसे शुक्लध्यान रहता है, तब तक पूर्णाहुति नहीं हुई है। पूर्णाहुति की तैयारी हो रही है। शुक्लध्यान पूर्णाहुति की तैयारी करवाता है लेकिन वह ध्यान कभी न कभी छूट जाना चाहिए। जो छूट जाता है, वह सारा विशेष भाव, विभाव कहलाता है। शुक्लध्यान प्रत्यक्ष मोक्ष का कारण है और धर्मध्यान परोक्ष मोक्ष का कारण है।
स्वभाव का मरण ही भावमरण है ज्ञानी मिल जाएँ और ज्ञान की प्राप्ति कर ले तो अजन्म स्वभाव प्रकट हो जाता है और जन्मोजन्म का स्वभाव खत्म हो जाता है।
इसीलिए श्रीमद् राजचंद्र ने कहा है न कि 'क्षण क्षण भयंकर भावमरणे कां अहो राची रहो।' भावमरण का अर्थ क्या है? स्वभाव का मरण हुआ और विभाव का जन्म हुआ। अवस्था में 'मैं', वह विभाव का जन्म हुआ और यदि हम अवस्था को देखें तो स्वभाव का जन्म होगा।
___ और इसीलिए हमने 'आपको' आत्मा के स्वभाव में रख दिया है। अब उसे उल्टा मत होने दो। आत्मा को उसके स्वभाव में रखा है, स्वभाव ही उसे मोक्ष में ले जाएगा। उसका स्वभाव ही मोक्ष है लेकिन हम दूसरी तरफ चले, जैसा लोगों ने बताया, उसी अनुसार इसलिए यह दशा हो गई