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(१.११) जब विशेष परिणाम का अंत आता है तब...
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प्रश्नकर्ता : फिर उसे कभी भी स्पर्श नहीं करते, फिर कोई भी वस्तु उसे स्पर्श नहीं करती?
दादाश्री : फिर वहाँ पर तो कोई संयोग है ही नहीं। संयोग होंगे तभी विशेष भाव होगा न! संयोग ही नहीं होंगे तो फिर विशेष भाव कैसा?
प्रश्नकर्ता : और वे संयोग तो, जब संसार में रहते हैं तभी मिलते हैं न?
दादाश्री : इस लोक में।
प्रश्नकर्ता : इस लोक में रहता है तभी विशेष भाव होता है। उस लोक में नहीं होता?
दादाश्री : जिसे अलोक कहते हैं, वहाँ पर नहीं।
इनमें से जब उसे खुद को खुद का भान प्रकट होता है, तब वह अलग हो जाता है। तब वह वहाँ पर जाता है, जहाँ पर फिर से अन्य किसी तत्त्व का सम्मेलन नहीं होता इसलिए वहाँ पर फिर कोई परिवर्तन नहीं होता। सिद्ध क्षेत्र में अन्य तत्त्व नहीं हैं। यह तो पूरा ही विज्ञान है !