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(१.१२) 'मैं' के सामने जागृति
१५३ ममता उत्पन्न हो गए और इस तरफ देखा तो वहाँ मोक्ष हो गया। वहाँ पर स्वरूप आ गया।
प्रश्नकर्ता : तो क्या पहले अज्ञान नहीं था?
दादाश्री : अज्ञान तो था ही न! ज्ञान का प्रदान करने पर ज्ञान मिलता है।
प्रश्नकर्ता : तो क्या पहले ज्ञान या अज्ञान नहीं था?
दादाश्री : अज्ञान रहता है लेकिन वह सूक्ष्म रूप में रहता है और फिर बाहर के संयोगों के मिलने पर बाहर दिखाई देता है, बाहर निकलता
है।
'मैं शुद्धात्मा', क्या वही अहंकार है? प्रश्नकर्ता : हम साधारणतया बात करते हुए भी कहते हैं कि मेरा आत्मा ऐसा कह रहा है लेकिन ऐसा नहीं कहते कि 'मैं आत्मा हूँ'। तो इसमें 'मैं' कौन है और 'आत्मा' कौन है?
दादाश्री : 'मैं' अहंकार है और 'आत्मा' मूल वस्तु है। प्रश्नकर्ता : 'मैं' कहाँ से शुरू हुआ?
दादाश्री : 'मैं' तो आप हो ही। 'मैं' को निकाल नहीं देना है। इस अहंकार को निकालना है।
अहंकार किस प्रकार से हुआ? अंदर आत्मा शुद्ध ही है। यह अहंकार तो, व्यतिरेक गुणों की वजह से उसकी उपस्थिति में उत्पन्न हो गया है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन क्या वह अहंकार स्वाभाविक है?
दादाश्री : स्वाभाविक तो इसमें कोई भी चीज़ नहीं है। ये तो अवस्थित चीजें हैं, विशेष भावी हैं। ये स्वाभाविक वस्तुएँ नहीं हैं। स्वाभाविक वस्तु हमेशा अविनाशी होती है और विशेष-भावी विनाशी होती है।