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(१.९) स्वभाव और विभाव के स्वरूप
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है। अब देखना, इतना संभालना कि फिर से ज़रा सा भी कच्चा न पड़ जाए। बार-बार यह ताल नहीं मिलेगा!
प्रश्नकर्ता : आपकी ये जो पाँच आज्ञाएँ हैं, जैसे-जैसे इन पाँच आज्ञाओं में रहेंगे तो फिर स्वभाव में परिणामित होगा न?
दादाश्री : अवश्य ही। स्वभाव में परिणामित होने का ही रास्ता है यह और जब पूर्ण रूप से स्वभाव में आ जाए तो उसे कहते हैं मोक्ष। यहाँ पर जीते जी ही मोक्ष। मोक्ष वहाँ नहीं होना चाहिए। अगर यहाँ पर नहीं है तो किस काम का?
प्रश्नकर्ता : कमल पानी में उगता है इसके बावजूद भी वह पानी से भीगता नहीं है।
दादाश्री : पानी उसे छू नहीं सकता, उसमें ऐसा स्वभाव है। आत्मा का स्वभाव ऐसा है कि संसार बिल्कुल भी छू नहीं सकता और काम चलता रहता है लेकिन स्वभाव में नहीं आ पाता। स्वभाव में कैसे आएगा? ज्ञानी पुरुष जो कि मुक्त पुरुष होते हैं, वे ला देते हैं, बाकी अन्य कोई व्यक्ति, जो बंधा हुआ है, वह तो नहीं कर सकेगा न!