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(१.९) स्वभाव और विभाव के स्वरूप
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सपोज़ से मिलता है यों जवाब प्रश्नकर्ता : आपने जो तरीका बताया, उस तरीके का पता नहीं चला। उस तरीके पर प्रकाश डालिए। आपने कहा था न कि सपोज़ हंड्रेड परसेन्ट है, आप जवाब लाते हो, लेकिन तरीका पता नहीं है। तरीके के बिना जवाब ले आते हो, वह कौन सा तरीका है ?
दादाश्री : एक रकम शाश्वत है और एक टेम्परेरी रकम है। अनंत काल से दोनों का गुणा करता रहा है। जब तक वह गुणा करने की शुरुआत करता है, तब तक तो वह टेम्परेरी गायब हो जाता है और फिर वापस टेम्परेरी को सेट करता है और वापस जैसे ही गुणा करने की शुरुआत करता है, वह गायब हो जाता है। दोनों परमानेन्ट होने चाहिए। एक टेम्परेरी और एक परमानेन्ट है। खुद स्वभाव को लेकर परमानेन्ट है
और विशेष भाव को लेकर टेम्परेरी है। विशेष भाव को लेकर, जब उसे ऐसा समझ में आएगा कि 'मैं परमानेन्ट हूँ' तो पूरा हल आ जाएगा। वही तरीका है, बाकी अन्य कोई तरीका नहीं है।
प्रश्नकर्ता : विशेष भाव से टेम्परेरी कहा है तो वह कौन सा विशेष भाव है?
दादाश्री : आत्मा का स्वाभाविक भाव है और उससे अधिक जानने का जो प्रयत्न हुआ कि 'यह सब क्या है? ये ससुर हैं और ये मामा हैं' उस विशेष भाव को जानने गया, उसी से यह फँसाव हो गया। यदि उस विशेष भाव को जानना बंद हो जाएगा तो स्वभाव में आ जाएगा।
शुक्लध्यान भी है विभाव
वस्तु जब खुद के स्वभाव की भजना (उस रूप होना, भक्ति) करती है तो उसे धर्म कहा जाता है। जबकि ये लोग अवस्तु के स्वभाव की भजना को धर्म मानते हैं। मोक्ष तो आत्मा का स्वभाव ही है, फिर कहाँ लेने जाना है।
प्रश्नकर्ता : 'वस्तु सहाओ धर्मों'। वस्तु का स्वभाव, आत्मा का स्वभाव, वही धर्म है।