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[११] जब विशेष परिणाम का अंत आता है तब... अविनाशी, वस्तु तथा वस्तु के परिणाम भी...
संयोग मिलने पर परिणामी वस्तुएँ विपरिणामित हो जाती हैं। इसलिए संसार खड़ा हो जाता है। सोने को यदि लाखों सालों तक भी रखे रखो फिर भी उसका स्वभाव परिणाम नहीं बदलता। हर एक 'वस्तु' अपने स्वभाव परिणाम को ही भजती (उस रूप होना, भक्ति) है। विपरिणाम अर्थात् विशेष परिणाम, विरुद्ध परिणाम नहीं!
यदि एक ही वस्तु हो तो वह उसके खुद के ही परिणाम में रहती है, स्वपरिणाम में ही रहती है। लेकिन यदि दो वस्तुएँ मिल जाएँ तो विशेष परिणाम उत्पन्न हो जाते हैं। यह तो ऐसा है कि देह में पाँच वस्तुएँ एक साथ रहती हैं, इसलिए भ्रांति से विशेष परिणाम उत्पन्न होते ही पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) के पास सत्ता आ जाती है और उसके परिणाम भुगतने पड़ते हैं। दूध का बिगड़ जाना, वह तो उसका स्वभाव है लेकिन दही बनना, वह उसका विशेष परिणाम है।
वस्तुओं के संयोगों की वजह से ये विपरिणाम दिखाई देते हैं और विपरिणाम को देखकर लोग उलझन में पड़ जाते हैं। मैं कह रहा हूँ कि बात को समझो। मेहनत करने की ज़रूरत नहीं है। स्वपरिणाम को समझो
और विशेष परिणाम को समझो। आत्मा विभाविक (विरुद्ध भावी) नहीं हुआ है। यह तो विशेष परिणाम है और वास्तव में तो विशेष परिणाम का 'एन्ड' (अंत) आ जाता है।
'वस्तु' अविनाशी है। उसके परिणाम भी अविनाशी हैं। सिर्फ