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आप्तवाणी-१४ (भाग-१)
का गुनाह नहीं है। पक्षपाती धर्म वाला हो तब लगता है कि भाई! यह इसका पक्ष ले रहा है लेकिन वह वीतराग है। कैसी पज़ल है यह ! नहीं?
यह जगत् निरंतर परिवर्तनशील है। एक परमाणु भी, टाइम-वाइम (काल-समय) सबकुछ निरंतर परिवर्तित ही होता रहता है। अतः नियति पर तो मैंने बहुत खोज की है कि क्या यह वास्तव में एक्ज़ेक्ट नियति की वजह से ही है? वह तो बल्कि अंदर मार खिलाती है क्योंकि नियति कहती है कि, 'यह सब मेरा स्वरूप है' वह तो बल्कि मार खिलाती है! लेकिन कोई किसी का ऊपरी नहीं है, ऐसा है यह जगत्।
प्रश्नकर्ता : जो व्यतिरक गुण उत्पन्न हुए, वे साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स में हैं या एक अलग ही भाग हैं ?
दादाश्री : साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स के आधार पर ही यह सब हुआ है। फिर भाप बनी और उससे बादल बने, बादल बने तो बरसात हुई, बरसात हुई तो फिर भाप बनी, यह सारी उठा-पटक चलती ही रहती है।
विभाव, अधिक विस्तारपूर्वक अब आपको एक उदाहरण देता हूँ कि व्यतिरेक गुण किसे कहते हैं ? ये व्यतिरेक गुण किस प्रकार से उत्पन्न होते हैं, वह बताता हूँ। अब यह जो पानी है, जो बरसात होती है, ऊपर जो H2O बनता है, वह कहाँ से लाए? तो कहते हैं कि यह जो समुद्र है, समुद्र में से भाप बनती है और ऊपर जाती है। तो यह भाप किसने बनाई ? इतना बड़ा समुद्र है, सभी लोग जानते हैं कि समुद्र में से ही भाप बनती है। नहीं? यदि हम दूरबीन या ऐसे किसी साधन से सूक्ष्म प्रकार से देखें तो दिन भर समुद्र में से धीरे-धीरे भाप निकलती ही रहती है। क्योंकि सूर्य के समुद्र पर आते ही समुद्र में से भाप बननी शुरू हो जाती है। सूर्य चला जाए तो कुछ भी नहीं रहेगा।
जैसे समुद्र और सूर्य दोनों के मिलने पर भाप बनती है, बनती है या नहीं? सूर्य के आने पर भाप बनती है न? अतः साइन्टिस्ट कहते हैं