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आप्तवाणी - १४ ( भाग - १)
के सानिध्य की वजह से चार कषाय खड़े हो गए, क्रोध - मान-मायालोभ । क्या यह सही है ?
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दादाश्री : सही है ।
प्रश्नकर्ता : तो मन-बुद्धि- चित्त और अहंकार का उद्भव भी उसी प्रकार से हुआ है न?
दादाश्री : वह ऐसा है न, क्रोध- - मान-माया - लोभ, वे तो प्रोडक्शन हैं और ये मन-बुद्धि- चित्त और अहंकार, ये तो इफेक्ट हैं।
प्रश्नकर्ता : ये इफेक्ट हैं, लेकिन क्या प्रोडक्शन का मतलब इफेक्ट नहीं है ? तो वह क्या है ?
दादाश्री : प्रोडक्शन अर्थात् कॉज़ेज़ । प्रोडक्शन अर्थात् कुछ चीज़ों के इकट्ठे होने से यह हो गया। उपाधि स्वरूप ! विशेष स्वरूप होना !
प्रश्नकर्ता : आत्मा और पुद्गल का सानिध्य हुआ इसलिए क्रोधमान- माया - लोभ खड़े हो गए। उसी प्रकार मन-बुद्धि - चित्त और अहंकार भी बने। यानी कि कॉज़ेज़ और इफेक्ट दोनों एक ही साथ उत्पन्न हुए ?
दादाश्री : नहीं ।
प्रश्नकर्ता : तो किस प्रकार से हुए ?
दादाश्री : तो मूलतः सब से प्रथम प्रोडक्शन है, क्रोध- -मानमाया-लोभ। अब, जब वे उत्पन्न हुए तो उनसे कर्म चार्ज होने लगे । यदि वे नहीं होते तो चार्ज नहीं होता, तो वे जो हैं चार्ज होने लगे । वही भावकर्म हैं। क्योंकि क्रोध किया । वह उत्पन्न हो चुका है लेकिन अगर उसका उपयोग हो तो... यदि उपयोग हुए बिना पड़ा रहता तो कोई हर्ज नहीं था। लेकिन उपयोग हुए बगैर रहता नहीं है न! उपयोग हुए बगैर कब रहेगा? जब उसके पास खुद का ज्ञान होगा । तब सभी परमाणु डिस्चार्ज हो जाएँगे क्योंकि अंदर से उसका जीव भाव जा चुका होता है !
प्रश्नकर्ता : हाँ! उपयोग होने पर फिर क्या होता है ?