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(१.९) स्वभाव और विभाव के स्वरूप
रहा हूँ इसलिए 'विज्ञान' का यह खुलासा हो रहा है। किसी चीज़ का कोई (स्वतंत्र) कर्ता है ही नहीं और (नैमित्तिक) कर्ता के बिना कुछ हुआ नहीं है !!!
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'खुद' संसार का चित्रण करता है । उसके बाद विचित्रता लाना 'नेचर' के हाथ में है । चित्र के विशेष परिणाम को लेकर उसे विचित्र करने का काम नेचर का है । फिर उसमें कोई हाथ नहीं डाल सकता, दखलंदाजी नहीं कर सकता !
डेवेलप होने वाला कौन है ?
प्रश्नकर्ता : आत्मा तो सभी में एक सरीखे ही हैं लेकिन एक में ज्ञान और एक में अज्ञान, वह भी क्या इस विश्व की रचना की वजह से हो रहा है ?
दादाश्री : विश्व की रचना ही ऐसी है। एक अंश से डेवेलप होते-होते वह दो अंश, चार अंश इस प्रकार डेवेलप होते-होते, आत्मा तो सभी के पास है लेकिन बाहर का भाग डेवेलप होता है, आत्मा के अलावा वाला भाग डेवेलप हो रहा है।
प्रश्नकर्ता : अर्थात् विभाव ?
दादाश्री : विभाव डेवेलप हो रहा है । वह डेवेलप होते-होते स्वभाव की तरफ जा रहा है।
प्रश्नकर्ता : वह विभाव स्वभाव की तरफ जा रहा है ?
दादाश्री : हाँ।
प्रश्नकर्ता: कारण ? विभाव और स्वभाव, दोनों के बीच में संबंध
है ?
दादाश्री : यह दर्पण में दिखाई देने वाला और सामने जो खड़ा है, जब दोनों एक सरीखे दिखाई देंगे तब मुक्त होगा,
छुटकारा होगा।
तब तक नहीं।