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आप्तवाणी-१४ (भाग-१)
भी चीज़ का असर होता है तो फिर भगवान मिलेंगे ही नहीं न! (यह जो पुद्गल है, वह तत्त्व नहीं है।)
प्रश्नकर्ता : अनादि अनंत अर्थात् उसकी आदि भी नहीं है और अंत भी नहीं है, इटर्नल?
दादाश्री : हाँ, इटर्नल। वे सब स्वभाव से, सभी स्वाभाविक वस्तुएँ इटर्नल होती हैं और विभाव से, सभी विभाविक चीजें टेम्परेरी होती हैं।
संसार का कारण, छः द्रव्य हैं तो संसार बना है, नहीं तो नहीं बनता। छः द्रव्यों में से भी यदि पुद्गल नहीं बनता तो संसार बनता ही नहीं। संसार में जो कुछ पाँच इन्द्रियों से अनुभव किया जा सकता है, वह सब पुद्गल प्रभाव है, वर्ना चेतन में कुछ भी नहीं बिगड़ सकता था।
प्रश्नकर्ता : पुद्गल ने ही यह सब किया है ?
दादाश्री : इस पुद्गल के रूपी भाव के कारण विशेष भाव उत्पन्न हो गया।
पुद्गल खुद ही विशेष परिणाम है प्रश्नकर्ता : अब यदि आत्मा निर्लेप है, आत्मा असंग है तो उस पर जड़ वस्तु के गुण लगते हैं क्या?
दादाश्री : हाँ, असंग ही है न। आपका आत्मा निर्लेप ही है। सभी का आत्मा, जीवमात्र का आत्मा निर्लेप ही है और यह जो हुआ है वह वैज्ञानिक असर है।
प्रश्नकर्ता : इस पद्गल में से आत्मा अलग हो जाए तो ये जो क्रोध-मान-माय-लोभ हैं, तो दूसरे पाँच तत्त्वों में से कौन से तत्त्व में मिल जाते हैं?
दादाश्री : किसी भी तत्त्व में नहीं मिलते। उसी को भगवान ने पुद्गल कहा है।