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छः तत्त्वों के समसरण से विभाव
समसरण मार्ग में...
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इस जगत् में सिक्स इटर्नल एलिमेन्ट्स हैं । और फिर ये छः तत्त्व समसरण वाले हैं। समसरण अर्थात् निरंतर परिवर्तनशील हैं। परिवर्तन होता है इसलिए ये जो छ: तत्त्व हैं, उनके, एक-दूसरे के नज़दीक आने से सभी अवस्थाएँ उत्पन्न हो जाती हैं और उनके पास-पास आने पर (इकट्ठे होने पर) विशेष भाव उत्पन्न होता है । यहाँ से वहाँ बदलता ही रहता है। उसके आधार पर सभी विशेष भाव बदलते रहते हैं और उस वजह से सब नई ही तरह का दिखाई देता है । इस जगत् के जो 'मूल तत्त्व' हैं, वे 'स्वाभाविक' हैं । वे जब 'रिलेटिव' में आते हैं तब ‘विभाविक' हो जाते हैं । एक तत्त्व दूसरे तत्त्व में मिलता नहीं है, सब अलग ही रहते हैं।
विधर्मी हुए हैं दो ही
प्रश्नकर्ता : जड़ और चेतन का जो संयोग हुआ और जो विशेष भाव उत्पन्न हुआ, तो उस संयोग के होने से पहले जड़ और चेतन दोनों अलग थे ?
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दादाश्री : पहले से इकट्ठे ही थे। ऐसा नहीं है कि पहले अलग थे। पहले से ऐसा ही है। जड़ व चेतन का संयोग है ही । ये सभी छः तत्त्व साथ में ही हैं। इनमें से इन्हें अलग किया जाए तो सब अपने-अपने गुणधर्मों में आ जाएँगे, वर्ना गुणधर्मों में नहीं आएँगे। ये छः तत्त्व साथ में ही हैं और सभी छः तत्त्वों में विधर्म आ गया है (विशेष धर्म प्रदर्शित