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(१.६) विशेष भाव - विशेष ज्ञान - अज्ञान
__ अब वास्तव में अहंकार सुख भी नहीं भोगता और दुःख भी नहीं भुगतता, वह तो अहंकार ही करता रहता है।
प्रश्नकर्ता : जिस प्रकार लोहे पर जंग लग गया उस प्रकार...
दादाश्री : जो जंग लगा, वह तो आत्मा पर। आत्मा से लेना-देना है। यदि आत्मा लोहा है तो यह अहंकार जंग है। लेकिन यह जो अहंकार कहता है कि, 'मैंने भोगा', वह उसने भोगा ही नहीं है। यह तो इन्द्रियों ने भोगा है और खुद अहंकार करता है कि 'मैंने भोगा है'। इसलिए कृष्ण भगवान ने कहा है कि 'इन्द्रिय, इन्द्रिय में बरतती हैं, तू किसलिए अहंकार कर रहा है?' और फिर स्वभाव से बरतती है। यह नहीं समझने की वजह से बेकार ही मार खाता रहता है। न तो कृष्ण भगवान को समझते हैं, न ही महावीर भगवान को समझते हैं। वे सही बताते हैं न! इसलिए सिर्फ बात को समझने की ज़रूरत है।
जंग उत्पन्न होने के बाद लोहा लोहे का काम करता है और जंग, जंग का। लोहा जंग में हाथ नहीं डालता, और वह जंग लोहे में हाथ नहीं डालता। इसी प्रकार इसमें, इसमें कौन सा जंग लगता है? वह अहंकार (मूल अहम्) और मन-बुद्धि-चित्त और अहंकार, अंत:करण रूपी जंग लगता है। तो वे अपना कार्य करते रहते हैं। आत्मा, आत्मा का कार्य करता रहता है। जब तक यह (अंत:करण का) कार्य है तब तक आत्मा आइडल (उदासीन रूप से) प्रकाश ही देता रहता है। जब अंतःकरण के सभी काम खत्म हो जाते हैं तब आत्मा का काम शुरू होता है। या फिर अंत:करण चल रहा हो और ज्ञानी मिल जाएँ और वे कहें कि 'अरे, तू यह नहीं है, तू इसे देख', तो देखना शुरू हो जाता है। वह जुदा हो जाता है। आप यदि देखते रहो कि 'चंदूभाई क्या कर रहे हैं' तो वह ज्ञान केवलज्ञान तक पहुँचेगा।