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[६] विशेष भाव - विशेष ज्ञान - अज्ञान
अज्ञान भी ज्ञान ही है विभाव अर्थात् मूल ज्ञान, खुद का ज्ञान तो है ही लेकिन यह विशेष ज्ञान उत्पन्न हो गया है।
प्रश्नकर्ता : तो उस पर आपत्ति क्यों उठानी है, विशेष ज्ञान पर? दादाश्री : आपत्ति कैसी? प्रश्नकर्ता : ज्ञान है और उसमें वृद्धि हुई है, विशेष ज्ञान।
दादाश्री : नहीं-नहीं! वृद्धि नहीं! विशेष ज्ञान यानी कि जो नहीं जानना था, वैसा ज्ञान उत्पन्न हो गया है। जिसकी ज़रूरत नहीं है, वैसा ज्ञान उत्पन्न हो गया है।
अशुद्ध किसलिए हो गया है? तो वह, 'विशेष ज्ञान में फँस गया है इसलिए अशुद्ध होता गया और स्वाभाविक ज्ञान में आया तभी से शुद्ध होता चला गया। विशेष ज्ञान को विभाव ज्ञान कहते हैं।
प्रश्नकर्ता : विशेष भाव से हो सकता है ?
दादाश्री : हाँ, विशेष ज्ञान अर्थात् अज्ञान को भी ज्ञान कहा जाता है। अर्थात् सांसारिक भाव उत्पन्न हो जाता है। शादी करता है, ससुर बनता है, सास बनता है, दादी सास बनता है, बुआ सास बनता है। और सिर्फ भेद डालने के लिए उसे अज्ञान कहते हैं, बाकी यह विशेष ज्ञान है।