________________
(१.६) विशेष भाव - विशेष ज्ञान - अज्ञान
कि, 'मेरा यह लोहा ऐसा नहीं था। मेरा लोहा किसने बिगाड़ा? गोडाउन में कौन घुस गया था?' अगर ऐसे शोर मचाएँ तो लोग क्या कहेंगे?
प्रश्नकर्ता : समुद्र की खारी हवा से।
दादाश्री : हाँ, वह तो है लेकिन यह किसने किया बताओ न! समुद्र की हवा ने किया या समुद्र ने किया या लोहे ने किया?
प्रश्नकर्ता : जो उसे वहाँ पर रख आया उसने। दादाश्री : उसने किया यह? प्रश्नकर्ता : लोहा वहाँ पर नहीं रखा होता तो नहीं होता।
दादाश्री : दुनिया में लोग उसे पकड़ते हैं, 'अरे भाई, इसे यहाँ पर रखा ही क्यों? इसलिए जंग लग गया'। ऐसा नहीं है। इस दुनिया के लोगों को यदि एक्ज़ेक्ट भ्रांति वाले को ढूंढ निकालना हो कि कौन गुनहगार है, तो?
प्रश्नकर्ता : जो व्यक्ति रखकर आया क्या वह गुनहगार नहीं है?
दादाश्री : वे तो अपने ही लोग हैं। जो आँखों से देखा हो, वह आँखों देखा प्रमाण है। दिखाई दे, ऐसा प्रमाण है। जो दिखाई दे, वैसा प्रमाण नहीं चलेगा। साइन्टिफिक एविडेन्स वास्तव में, एक्ज़ेक्ट होना चाहिए। संसार के लोगों को या कोर्ट को आँखों देखे एविडेन्स की ज़रूरत है, यहाँ पर तो एक्जेक्टनेस की ज़रूरत है। आप तो एकदम से नौकर को निकाल दोगे। वैसा नहीं चलेगा। साइन्टिफिक, वैज्ञानिक तरीके से अच्छी तरह जाँच करनी चाहिए कि भाई, यह किसने किया? किसने जंग लगाया? हू इज़ रिस्पोन्सिबल? बोलो ! मैं तो ऐसा जानता भी नहीं था कि समुद्र के किनारे रखने से जंग लगता ही है।
इसलिए तब फिर हम उस चौकीदार को डाँटते हैं कि, 'अरे, यह तूने क्या किया लोहे का? यह लोहा तो बिल्कुल साफ था, हाथ वगैरह नहीं बिगड़ते थे और यह क्या हो गया? ऊपर क्या लगा दिया है तूने?' तब चौकीदार कहता है, 'मैं क्या करूँ साहब, मैंने कुछ भी नहीं किया,