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( १.६) विशेष भाव
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विशेष ज्ञान
अज्ञान
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में सुना है, वह आया है या क्या है ?' तो उससे घबराहट हो जाती है या नहीं ? तो जब से घबराहट होने लगे तब से लेकर रात भर रहती है । उसी प्रकार इस जीव का उद्गम हुआ है। ऐसे भ्रांति से यह गाँठ पड़ गई है कि, ‘यह मैं ही हूँ, मैं ही कर रहा हूँ'। तभी से भ्रांति हो गई है तो उसका अंतिम स्थान कौन सा है ? मूलतः खुद को जो भ्रांति हो गई है और गाँठ पड़ गई है, तो अंत में जब वह भान में आता है तो छूट जाती है।
केवलज्ञान क्या है? अंदर जो बैठे हैं वे शुद्धात्मा इस प्रकृति को देखते ही रहते हैं। खुद का ज्ञाता - दृष्टापन एक समय के लिए भी नहीं चूके हैं । जब से संसार का आरंभ काल है, तभी से 'देख' और 'जान' रहे हैं लेकिन यह एक भ्रांति उत्पन्न हो गई है कि, 'मैं यह हूँ या वह हूँ?' तभी से यह संसार खड़ा हो गया। हम समझाकर किसी की भ्रांति दूर करते हैं लेकिन फिर से भ्रांति खड़ी ही रहती है क्योंकि पहले का चार्ज किया हुआ है, तो वह उसे वापस उस भँवर में डाल देता है । इसलिए भगवान ने कहा है कि समकित हो जाएगा तो काम हो जाएगा, नहीं तो उसी भँवर में...
प्रश्नकर्ता : आत्मज्ञान का अफाट (जो टूटे या फटे नहीं) पिंड है, फिर भी भ्रांति में क्यों पड़ गया ?
दादाश्री : अफाट पिंड का मतलब क्या है ? इसका अर्थ क्या है ? अनंतज्ञान। फिर भी भ्रांति में क्यों पड़ गया ? तो कहते हैं कि, 'इस दुनिया को बताने के लिए उसे भ्रांति कहना पड़ता है, वास्तव में भ्रांति नहीं है'। यह आत्मा का विभाविक ज्ञान है, यह भी एक ज्ञान है । यह भ्रांति नहीं है लेकिन भ्रांति का मतलब क्या है, वह स्पष्ट करने के लिए मैं आपको समझाता हूँ। यह विभाव में पड़ा हुआ आत्मा है । उसे दुनिया के लोग रिलेटिव भाषा में, भ्रांत भाषा में भ्रांति कहते हैं । वास्तव में भ्रांति अर्थात् अंदर जब दुःख उत्पन्न होता है न, तब मन में ऐसा लगता है कि, ‘इतना सब जानने के बावजूद भी अदंर यह जो है, वह क्या है? अतः यह कुछ अलग है। यह मेरा स्वरूप नहीं है', इसे कहते हैं भ्रांति । कोई गाँठ पड़