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आप्तवाणी-१४ (भाग-१)
मात्र दृष्टि को ही बदलने से इतना बड़ा संसार खड़ा हो गया तो अन्य तो कितनी सारी शक्तियाँ हैं !
यह सांसारिक ज्ञान है लेकिन विशेष ज्ञान है और यह विशेष ज्ञान, यही बुद्धि है।
यह अज्ञान की आराधना नहीं करता। यह एक प्रकार का विशेष ज्ञान है। इस संसार में यह जो ज्ञान है, वह बिल्कुल अज्ञान है। हम लोगों से पूछे कि 'आप सभी यह अज्ञान कर रहे हो?' तो वह किस दृष्टि से अज्ञान है? कि भाई, अध्यात्म की दृष्टि से अज्ञान है, वर्ना यह ज्ञान है या अज्ञान?
प्रश्नकर्ता : ज्ञान है।
दादाश्री : अब ये अध्यात्म वाले इसे 'अज्ञान' कहते हैं। मैं नहीं कहता कि, 'भाई, क्यों बेकार ही कर्म बाँध रहा है?' यह अज्ञान ही कहलाता है। यह ज्ञान और यह अज्ञान । अब भाई! पूरी दुनिया इसे खुले तौर पर ज्ञान कहती है, और तू उसे अज्ञान कह रहा है? यह विशेष ज्ञान है। आत्मा का ही ज्ञान है लेकिन विशेष ज्ञान है। यानी कि संयोगों के अधीन नया विशेष गुण उत्पन्न हो जाता है। फिर आगे जाकर वह सब आता है, यह संसार दिखने लगता है हमें। यह सांसारिक ज्ञान भी ज्ञान है, अज्ञान नहीं है लेकिन यदि मोक्ष में जाना हो तो यह अज्ञान है। और इस ज्ञान को समझना चाहिए।
प्रश्नकर्ता : अर्थात् यह इस संदर्भ में ऐसा है?
दादाश्री : हाँ, इस संदर्भ में ही तो न! और यह विशेष ज्ञान तो उत्पन्न हो गया है।
वास्तव में वह नहीं है भ्रांति
अब, जीव का स्वरूप अज्ञानता से ही बन गया है। जैसे रात को हम अकेले हों और सो जाएँ और अंदर दूसरे रूम में प्याला खड़खड़ाए तो एकदम से मन में ऐसी भ्रांति हो जाती है कि, 'हमने जो भूत के बारे