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आप्तवाणी - १४ ( भाग - १ )
गया है, भूत लग गया हो, उस तरह से । भूत लग जाए तो इसका मतलब इंसान मर नहीं गया है। बस इतना ही असर रहता है, और कुछ नहीं है। उसी तरह यह संसार भूत की तरह चिपका है, और कुछ नहीं है
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चावल स्वाभाविक चीज़ कहलाते हैं और खिचड़ी विशेष भाव कहलाती है और डांगर (छिलके वाले चावल), वह स्वाभाविक कहलाता है, जैसा कुदरती रूप से जन्म हुआ, वैसा । खिचड़ी बनाने पर फिर विशेष भाव हो गया। खिचड़ी विशेष भाव वाली है और आत्मा सहज भाव वाला है।
वे कहलाते हैं अन्वय गुण
बाकी, इस पज़ल को मैंने खुद देखा है कि यह पज़ल कैसे बनी है। क्रोध- मान-माया - लोभ व्यतिरेक गुण हैं, अन्वय गुण नहीं हैं । प्रश्नकर्ता : अन्वय गुण का मतलब ?
दादाश्री : अन्वय गुण अर्थात् स्वाभाविक गुण । मोक्ष में भी रहते हैं और यहाँ पर भी रहते हैं । जहाँ हो, वहाँ पर हमेशा साथ ही रहते हैं और व्यतिरेक अर्थात् जब तक कुछ संयोग साथ में हैं तभी तक रहेंगे । अर्थात् टेम्परेरी हैं, कालवर्ती हैं। और जैसे ही अलग हुए कि बिखर
जाएगा।
प्रश्नकर्ता : आत्मा के अन्वय गुण कौन-कौन से हैं? उन्हें अन्वय गुण क्यों कहा गया हैं ?
दादाश्री : जो उसके खुद के गुण हैं, वे अन्वय गुण हैं ।
प्रश्नकर्ता : उसके लिए अन्वय शब्द का उपयोग क्यों किया ?
दादाश्री : उसके खुद के हैं । अन्वय अर्थात् उसके अंदर गुथे हुए हैं, आत्मा के गुण । व्यतिरेक अर्थात् क्रोध - मान - माया - लोभ, वे अलग हैं।‘हमें’ उनसे कोई लेना-देना नहीं है । अन्वय गुण आत्मा के खुद के गुण हैं। वह तो अनंत गुणों का धाम है । अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतशक्ति, अनंतसुख, कितने सारे गुण हैं आत्मा के !