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आप्तवाणी - १४ ( भाग - १
में जाना हो जहाँ पर कि कोई भी संयोग नहीं हैं, तब उसे ऐसे साधन मिल जाते हैं। शास्त्र, ज्ञानी पुरुष, सभी साधन मिल जाते हैं, तब खुद के स्वरूप को समझता है और तभी से वह मुक्त होने लगता है । एक जन्म, दो जन्म, पंद्रह जन्मों में भी, निबेड़ा आ जाता है उसका।
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'कोटि वर्षनुं स्वप्न पण, जाग्रत थतां शमाय, तेम विभाव अनादिनो, ज्ञान थतां दूर थाय.'
- श्रीमद् राजचंद्र
'कोटि वर्षों का स्वप्न भी', लोगों को स्वप्न आते हैं । स्वप्न में वे ऐसा देखते हैं कि सात-सात जन्म हो चुके हैं ! सपना तो चाहे करोड़ों साल का आए लेकिन जागृत होते ही बंद हो जाता है । जागते ही खत्म हो जाता है न ?
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : फिर कोई लेना-देना रहता है ? उसी प्रकार यह ‘कोटि वर्षों का स्वप्न भी जागृत होते ही बंद हो जाता है उसी प्रकार से यह अनादि का विभाव है', कृपालुदेव ऐसा कहते हैं कि अनादि से जो विशेष भाव है, वह ज्ञान होते ही दूर हो जाता है।
किसी भी काल में न सुना हो, ऐसा है यह अक्रम विज्ञान । इसलिए यदि बात को समझ ले तो निबेड़ा आ जाएगा।