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[५] अन्वय गुण-व्यतिरेक गुण
'गुणधर्मों' से हुआ विशेष भाव प्रश्नकर्ता : यह जो विभावावस्था उत्पन्न हुई, लेकिन स्वभाव में से विभाव होने का पहला कारण क्या होगा?
दादाश्री : पहला कारण कोई है ही नहीं। दुनिया में नियम ऐसा है कि जब दो चीजें मिलती हैं... जब तक वे अलग हैं तब गुणधर्म अलग होते हैं और जब वे दोनों मिलती हैं तब 'गुणधर्म' में 'विशेष भाव' उत्पन्न हो जाता है। दो चीजें मिली हैं इसलिए। यदि न मिलें तो विशेष भाव नहीं होगा।
प्रश्नकर्ता : दो चीज़ों के गुणधर्म जो हैं वे, और सामीप्य भाव की वजह से जो विशेष भाव उत्पन्न हुआ है, उनके गुणधर्म अलग हैं ?
दादाश्री : अलग हैं।
कोई भी प्रकाश, चाहे सूर्य का हो या लाइट का हो लेकिन जब कोई व्यक्ति उसमें खड़ा रहता है तो परछाई उसके साथ ही खड़ी हो जाती है। दो चीज़ों में से तीसरी चीज़ उपस्थित हो जाती है।
यदि सिर्फ दर्पण देखे तो भी सब अपने जैसा ही दिखाई देता है और उसी प्रकार से यह उत्पन्न हुआ है।
यह आत्मा का विशेष भाव है, विशेष स्वरूप है, विभाव स्वरूप जो कि उसमें हमेशा के लिए नहीं रहता। दूसरों के संयोग से यह उत्पन्न हुआ है जबकि खुद तो स्वभाव में ही है। यह विशेष भाव उससे चिपक